हास्य रचना:
प्रवचन
संजीव 'सलिल'
*
आधी रात पुलिस अफसर ने पकड़ा एक मुसाफिर.
'नाम बात, तू कहाँ जा रहा?, क्या मकसद है आखिर?'
घुड़की सुन, गुम सिट्टी-पिट्टी, वह घबराकर बोला:
' जी हुजूर! प्रवचन सुनने जाता, न चोर, मैं भोला.'
हँसा ठठाकर अफसर 'तेरा झूठ पकड़ में आया.
चल थाने, कर कड़ी ठुकाई, सच जानूंगो भाया.'
'माई-बाप! है कसम आपकी, मैंने सच बोला है.
जाता किसका प्रवचन सुनने? राज न यह खोला है.'
'कह जल्दी, वरना दो हत्थड़ मार राज जानूँगा.'
'वह बोला: क्या सच न बोलकर व्यर्थ रार ठानूँगा.'
'देर रात को प्रवचन केवल मैं न, आप भी सुनते.
और न केवल मैं, सच बोलूँ? शीश आप भी धुनते.'
सब्र चुका डंडा फटकारा, गरजा थानेदार.
जल्दी पूरी बात बता वरना खायेगा मार.'
यात्री बोला:'मैं, तुम, यह, वह सबकी व्यथा निराली.
देर रात प्रवचन सुनते सब, देती नित घरवाली.
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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5 टिप्पणियां:
- kusumvir@gmail.com
आदरणीय सलिल जी
आपने बहुत ही सुन्दर,एवं अति रोचक कविता लिखी है l
बहुत बधाई l
सादर,
कुसुम वीर
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
संजीव जी,
अबाधित और नियमित 'पत्नी प्रवचन' पर आपकी रचना बहुत भायी!
अशेष साधुवाद!
सादर,
दीप्ति
- sosimadhu@gmail.com
आ. संजीव जी
काका हाथरसी की एक हास्य कविता याद हो आयी
"
पत्नी खटिया पर पड़ी व्याकुल घर के लोग
व्याकुल घर के लोग वैद्य ततकाल बुलाया
इनको माता निकली है उसने समझाया
धन्य , धन्य हो धन्य भाग्य विधाता
मांगी पत्नी किन्तु तुमने भेज दी माता ."
मधु
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
:)) laughing :)) laughing :)) laughing
बहुत खूब मधु दी !
दीप्ति
Ram Gautam ✆ ekavita
आ. आचार्य जी,
बहुत सुंदर हास्य है, पढ़कर अच्छा लगा |
आपको बधाई |
सादर- गौतम
यात्री बोला:'मैं, तुम, यह, वह सबकी व्यथा निराली.
देर प्रवचन सुनते सब, देती है घरवाली.
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