गज़ल |
ज्ञानेंद्र त्रिपाठी जाने कब कैसे ख्वाबों के पंख मिले;
जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले.
जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है;
मुझको जीवन से बदले में आह मिले.
मै ने कब चाहा पंख और ख्वाब गगन के;
मै ने चाहा टूटे दिल को बस एक राह मिले.
जब यह सवाल किया मैने जीवन से;
बदले में एक और दर्द और एक आह मिले.
जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले.
जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है;
मुझको जीवन से बदले में आह मिले.
मै ने कब चाहा पंख और ख्वाब गगन के;
मै ने चाहा टूटे दिल को बस एक राह मिले.
जब यह सवाल किया मैने जीवन से;
बदले में एक और दर्द और एक आह मिले.
____________________________________________
gyanendra tripathi no-reply@plus.google.com
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें