ग़ज़ल
"मन्सूर" उस्मानी
*
ग़म उठाओगे मुस्कुराओगे
लेकिन अंदर से टूट जाओगे।
जब ये दुनिया तुम्हें सतायेगी,
सारी तहज़ीब भूल जाओगे।
अब तो आँखें भी बुझ गई अपनी,
और कितना हमें रूलाओगे।
रोशनी के फरेब में आकर,
और कितने दिये बुझाओगे।
और कुछ दिन का यह झमेला है,
फिर हमें भी यहां न पाओगे।
याद आयेंगे हम बहुत "मन्सूर",
जब कोई गीत गुनगुनाओगे।।
*****
"मन्सूर" उस्मानी
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ग़म उठाओगे मुस्कुराओगे
लेकिन अंदर से टूट जाओगे।
जब ये दुनिया तुम्हें सतायेगी,
सारी तहज़ीब भूल जाओगे।
अब तो आँखें भी बुझ गई अपनी,
और कितना हमें रूलाओगे।
रोशनी के फरेब में आकर,
और कितने दिये बुझाओगे।
और कुछ दिन का यह झमेला है,
फिर हमें भी यहां न पाओगे।
याद आयेंगे हम बहुत "मन्सूर",
जब कोई गीत गुनगुनाओगे।।
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