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सोमवार, 24 सितंबर 2012

धरोहर: २ ~ मैथिलीशरण गुप्त

धरोहर :
इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में सुमित्रानंदन पंत जी के पश्चात् अब आनंद लें मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाओं का। 

२.स्व.मैथिलीशरण गुप्त 

प्रस्तुति :
*
नर हो न निराश करो मन को


धरोहर: २ 
नर हो न निराश करो मन को




~  मैथिलीशरण गुप्त जी*
नर हो न निराश करो मन को...
*
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो ।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।।
*
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।।
*
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो ।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।।
*
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे ।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

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कैकेयी का पश्चाताप

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मातृभूमि

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2 टिप्‍पणियां:

kamlesh kumar diwan ने कहा…

kamlesh kumar diwan

sanjeev ji

kavi ki prana pardan karne baali kavitaye hai dhanyabad

Divya Narmada ने कहा…

kamlesh ji!

divyanarmada.blogspot.in par dharohar men pant, gupt, nagarjun, nirala, mahadevi, bharti aadi ke chitr, rachnayen dekhen... aap kuchh kaviyon kee samagree bhejen.