धरोहर :
५. स्व.महादेवी वर्मा
स्व. भगवतीचरण वर्मा-महादेवी जी
*मेरी पसंद का कारण... प्रस्तुत हैं मेरे दो छन्द -
शिथिल संध्या का समर्पण
अरुण-पथ पर तिमिर अर्पण
हो रहे पल पल समीप
पारलौकिक मिलन के क्षण
जीवन जब होता मृत्यु तीर
बहतीं स्मृतियाँ बन अधीर
मुक्ति-द्वार भयभीत धीर-
मन, काँप काँप जाता शरीर
***
चढ़ा न देवों के चरणों पर
गूंथा गया न जिसका हार
जिसका जीवन बना न अब तक -
उन्मादों का स्वप्नागार
निर्जनता के किसी अँधेरे
कोने में छिप कर चुपचाप
स्वप्न-लोक की मधुर कहानी
कहता सुनता अपने आप
किसी अपरिचित डाली से
गिर कर नीरस वन का फूल
फिर पथ पर बिछ कर आँखों में
चुपके से भर लेता धूल
उसी सुमन सा पल भर हँस कर
सूने में हो छिन्न मलीन
झड जाने दो जीवन माली
मुझको रह कर परिचय हीन
( नीहार से)
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रामगढ स्थित आवास.
इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार
का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो
तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में
सुमित्रा नंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त, नागार्जुन तथा सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के पश्चात् अब आनंद लें महीयसी महादेवी वर्मा जी की रचनाओं
का।
५. स्व.महादेवी वर्मा
स्व. भगवतीचरण वर्मा-महादेवी जी
*मेरी पसंद का कारण... प्रस्तुत हैं मेरे दो छन्द -
शिथिल संध्या का समर्पण
अरुण-पथ पर तिमिर अर्पण
हो रहे पल पल समीप
पारलौकिक मिलन के क्षण
जीवन जब होता मृत्यु तीर
बहतीं स्मृतियाँ बन अधीर
मुक्ति-द्वार भयभीत धीर-
मन, काँप काँप जाता शरीर
चढ़ा न देवों के चरणों पर
गूंथा गया न जिसका हार
जिसका जीवन बना न अब तक -
उन्मादों का स्वप्नागार
निर्जनता के किसी अँधेरे
कोने में छिप कर चुपचाप
स्वप्न-लोक की मधुर कहानी
कहता सुनता अपने आप
किसी अपरिचित डाली से
गिर कर नीरस वन का फूल
फिर पथ पर बिछ कर आँखों में
चुपके से भर लेता धूल
उसी सुमन सा पल भर हँस कर
सूने में हो छिन्न मलीन
झड जाने दो जीवन माली
मुझको रह कर परिचय हीन
( नीहार से)
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रामगढ स्थित आवास.
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