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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

दोहा सलिला: दोहा यमक मुहावरा संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा यमक मुहावरा
संजीव 'सलिल'
*
घाव हरे हो गये हैं, झरे हरे तरु पात.
शाख-शाख पा रकार रहा, मनुज-दनुज आघात..
*
उठ कर से कर चुका, चुका नहीं ईमान.
निर्गुण-सगुण  न मनुज ही, हैं खुद श्री भगवान..
*
चुटकी भर सिंदूर से, जीवन भर का साथ.
लिये हाथ में हाथ हँस, जिएँ उठाकर माथ..
*
 सौ तन जैसे शत्रु के, सौतन लाई साथ.
रख दूरी दो हाथ की, करती दो-दो हाथ..
*
टाँग अड़ाकर तोड़ ली, खुद ही अपनी टाँग.
दर्द सहन करते मगर, टाँग न पाये टाँग..
*
कन्याएँ हडताल पर, बैठीं लेकर माँग.
युव आगे आकर भरें, बिन दहेज़ ले माँग..
*
काट नाक के बाल हैं, वे प्रसन्न फिलहाल.
करा नाक के बाल ने, हर दिन नया बवाल..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



2 टिप्‍पणियां:

deepti gupta ✆ yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


वाह.. वाह संजीव जी, सुन्दर दोहे !

सादर ,
दीप्ति

musafir ने कहा…

दोहों के माध्यम से बिना लाग लपेट के सटीक बात कही गई है.