कार्यशाला : कुण्डलिया
*
अन्तर्मन से आ रही आज एक आवाज़।
सक्षम मानव आज का बने ग़रीबनिवाज़।। -रामदेव लाल 'विभोर'
बने गरीबनिवाज़, गैर के पोंछे आँसू।
खाए रोटी बाँट, बने हर निर्बल धाँसू।।
कोरोना से भीत, अकेला डरे न पुरजन।
धन बिन भूखा रहे, न कोई जग अंतर्मन।। - संजीव वर्मा 'सलिल'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें