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रविवार, 14 मार्च 2021

समीक्षा पथ का चुनाव कांता राॅय

 
समीक्षा
पुस्तक - पथ का चुनाव
लेखिका - कांता राॅय
प्रकाशक -ज्ञान गीता प्रकाशन
पृष्ठ संख्या - 165
हार्डबाऊँड
मूल्य-395:00 रुपए
आई.एस.बी.एन. : 978-93-84402-98-3
बसंत ऋतु में खिले विभिन्न रंगों के पुष्प अपनी -अपनी विशिष्ट सुगंध से महकते हैं ठीक उसी प्रकार कांता जी की लघुकथा संग्रह 'पथ का चुनाव ' अपने में एक सौ चौंतीस लघुकथाओं के जरिए मानवीय संवेदनाओं को समेटने में सक्षम जान पड़ती है।
लघुकथा उस बंद कली के सदृश है जो अपने अंदर खुश्बू अर्थात मानवीय भावों व संवेदनाओं को समेटे तथा अनेक संभावनाओं जन्म देने की क्षमता रखती है और सीमित आकार मे बहुत कुछ समेटते हुए तेज चुभन दे जाती है। ये वर्णनात्मक शैली और संवादों के माध्यम से कही जाती है।इसमें पल विशेष को संकोच के संपूर्णता लानी होती है और व्यर्थ के वर्णन से बचना होता है।पूर्व से आज लघुकथा ने अनेक पड़ाव पार करते हुए अपना रूप -रंग निखार कर कामयाब हो चहुँ ओर अपना परचम लहरा रही है।
कांता रॉय मैथिली भाषा की होते हुए भी हिन्दी साहित्य के लघुकथा के क्षेत्र में अपनी रचनाओं द्वारा एक मुकाम हासिल किए हुए हैं ।
उनके माध्यम से मैंने लघुकथा की बारीकीयाँ सीखीं।
उनका पहला लघुकथा संग्रह ' घाट पर ठहराव कहाँ ' पढ़ी मुझे अच्छी लगी और अब उसका अनुवाद पंजाबी भाषा में कर रही हूँ।
'पथ का चुनाव' अधिक परिष्कृत हो कर पाठकों के समक्ष आई है। कांता रॉय को मैंने हिन्दी लेखिका संघ मध्यप्रदेश भोपाल के माध्यम जान पायी।वे मेरी मार्गदर्शिका भी है और सखी भी।
आधुनिक दौर लक्ष्य के सम्मुख दृढ़ संकल्प की लालच के समक्ष हार को बड़ी सहजता से 'लक्ष्य की ओर' में मानवीय संवेदनाओं के उतार - चढ़ाव को सरलता के उकेरा गया है। 'मवेशी' में मज़दूर की व्यथा के साथ - साथ 'आवेश' भी पीछे नहीं रहता और बहुत कुछ चुपके से कह जाता है। 'गरीबी की धुंध में' आदमी न चाहते हुए भी लाचारी से कितना मजबूर हो जाता है दूसरी तरफ हिम्मत और हौसले की तस्वीर से पाठक 'उड़ान का बीज' भावी पीढ़ी के लिये बो जाता है। 'पैंतरा' के माध्यम से आदमी के बदलते व्यवहार पर करारा कटाक्ष किया है। 'ओछी संगत' अपनी महत्ता के लिए तटस्थता से खड़ी जान पड़ती है।
'भूख' के साथ - साथ मानवीय संवेदनाओं को 'घर के भगवान' में सफलता से स्पष्ट किया है। गाँव से निकले नवयुवक के सपनों के 'मोह पाश' को भंग होते देख उसके सपने अंदर तक साल जाते हैं। संवेदनाओं को अपने अंदर ही समेटने को मजबूर हो 'मौन' रहना ही उचित लगता है।
'रामअवतार' में आदमी के शातिर दिमाग की दाद देनी पड़ेगी। 'गरीबी का फोड़ा' और 'मुर्दे की शोभा' से 'बेरोजगारी' भी अपना कमाल दिखलाने में पीछे नहीं रहती।
'ठठरी पर ईमानदारी' की जीत का परचम बड़ी शान से लहरा रहा है।आधुनिक युग में बच्चे द्वारा पिता को 'गरीब की परिभाषा' समझाने पर बेचारे पिता के पास आँखें चुराने के सिवा कोई चारा नहीं बचता ।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे को चरितार्थ कर करते हुए 'किसान ' सफल सिद्ध हुई है। मानवीय संवेदनाओं को ताक पर रख कर बयान करती 'श्राद्ध' मानवीय मनोवृत्ति पर करारी चोट करे बिना नहीं रहती। 'मेंटर' में लेखिका ने सुगंधा की मेहनत व लगन को परे धकेलते हुए डंडे के असर को प्रमुखता देती बताया है।जोकि गलत है। 'जरसी में दरख्त' फौजी जीवन को प्रेरित करती लघुकथा पाठक मन को उद्देलित किए बिना नहीं रहतीl
आज हर आदमी स्टेज पर भाषण दे रहा है या कथा कहानी में बखान कर रहा है व नारी को देवी तुल्य प्रतिष्ठित करने में लगा है। लेकिन यदि उससे भी पूछा जाय तो उसके स्वयं के घर में नारी की दशा में कोई परिवर्तन नहीं आयाl जैसा कि 'पुतले का दर्द' में नारी को मानव इकाई मानने को चुपके से घी चावल में कुनैन की गोली परोस दी गई हो। आधुनिक विचारों को सहेजने वाली के अंधे प्यार को नकारता 'बैकग्राउंड' है। 'जोगनिया नदी' से उठने वाले धुएँ ने नायिका का दिल भारी कर और पुरानी यादें उसके दिल का दर्द बनकर का दिल भी भारी कर देती हैl 'पतिता' में नारी पुरुष की बराबरी करती नज़र आती हैl समाज में व्याप्त विभिन्न के बीच कुछ 'आदर्श ' चेहरे अपनी उपस्तिथि दर्ज कराते अच्छे लगे l
आज की नारी बड़ी सहजता से चुनौती सोच विचार के पश्चात् अपने 'पथ का चुनाव' कर रही हैl औरत ने अपने 'प्यार' को जिन्दगी से जोड़ कर बहुत सार्थक कार्य को अंजाम दिया हैl 'विष वमन' कथा सुषमा के प्रति व्यवहार हद तक अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप करारा जवाब दिया। यहाँ तक की परुष प्रताड़ित नारी की चर्चा तो सर्वव्यापी है पर ऐसी 'सुरंग' में नारी है जो पुत्र द्वारा यदा कदा गुस्सा आने पर पीट दी जाती हैl उसके द्वारा होने वाली बहू से पूछ बैठती है कि तुम लव इन रिलेशन में रह लो जिसे देख नायिका के साथ - साथ का आवाक रह जाता है l वहीं 'मैसी' एक करारा व्यंग हैl हिम्मत और हौंसले का जीता जागता सबूत लेखिका ने 'उड़ान का बीज' में दिया हैl जहाँ एक छोटी सी चींटी भी कम नहीं हैl
गरीबी में कुण्ठित सौंदर्य अनेक कल्पनाओं के गड़ को इंगित करती लघुकथा 'मक्खन जैसे हाथ' सार्थक बन पड़ी है l अपराध बोध ग्रसित 'रक्तिम मंगल सूत्र' पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है गरीबी और नारी सुरक्षापर चिंता भी व्यक्त करती हैl प्रेम की जीत की ओर इंगित करती 'तुम्हारा हक' हकदार तक पहुंचाती मार्मिक लघुकथा मन को उद्देलित किए बिना नहीं रहतीl 'टी-२०' में नारी के जीवन का ससुराल में क्रिकेट मैदान की तरह सामांजस्य बिठाती कथा सार्थक जान पड़ती है l
'रिश्ते की जकड़' प्रेम की हार को बड़ी खूबसूरती से उकेरा गया है l 'काँपते पत्ते' में नारी की मनोदशा किसी से छिपी नहीं है। अल्बर्ट के 'वायलन की धुन' नारी के मनोभावों पर मलहम लगाती सी जान पड़ती है । यहाँ तक कि अतीत के साए में भी अछूते न रह सका बूढ़े जहन में जीवन साँझ तक सहेजे जान पड़ते हैं। प्यार की इंतहा तो तब हो जाती है जब 'महकती खामोशी ' अगाध प्रेम की परिभाषा बन जाती है। इसी बीच 'अवलंब ', 'जोगी का जोग', 'फासले' अपने आप में गहरे अर्थ समेटे हुए है वहीं 'कुँवारी के कितने वर' एक विडंबना-सी जान पड़ती है।
'कलेजे पर ठुकी हुई कील' भी नासूर सा दर्द चुपके से दे जाती। नारी को अपनी संवेदनाओं को समेटते हए 'मौन' रहना ही उचित जान पड़ता है। ' प्रायश्चित ' के माध्यम के शीलो के मन में उपजे प्रेम बीज को समाज के ठेकेदरों ने पनपने पर गाँव की चौपाल पर पंचों के बीच पंचगव्य खाने को विवश कर दिया। नारी जीवन में विसंगति स्वरूप 'सिगरेट ' साबित करती है मौके की जीत को। जहाँ नायिका ने छुपकर सिगरेट पीना मुनासिब समझा। ठंडे पड़े रिश्तों की दुहाई देती लघुकथा 'ठंडी आँखें' पाठको को विशेष चिंतन देतीहै । साथ ही 'प्रेम विवाह' के पारिवारिक भोज में कुछ अकल्पनीय व आकातस्मिक बहुत घट जाता है जो पाठकों को अंदर तक हिला जाता है। जो की समाज में यदा - कदा घटता दीख पड़ता है।
'कैक्टस के फूल ' आज के दौर में सशक्त व अनूठी कृति है।इसी कड़ी में 'हड्डी' नायिका के गले में फँसने पर उसके द्वारा बड़ी चतुराई से निकालने पर पाठक भी अचंभित हो जाते हैं। 'मिलन' के अनूठेपन के साथ 'बहकते गुलाल का ठौर' पाठकों को मिल जाता है साथ गुलाल को भी। 'भरोसा तो है पर......' में नायिका ने अविश्वास को पुष्ट करती कथा ने उसका साथ खूब निभाया ।अविश्वास पर आधारित 'अधजली' भी विश्वास न कर पाई।
'कस्तूरी -मृग ' में लेखिका ने बड़े सलीके से आज कल हो रहे जल्दी -जल्दी तलाक़ व पछतावे को इंगित करती लघुकथा खूबसूरत बन पड़ी है 'शक ......एक कश्मकश ' की तरह आज भी समाज में शक से पनपने वाली समस्याएं विद्वमान हैं। मन पवित्र हो पर देह के संबध में समाज की निगाहों से आहत होती नारी हिम्मत से 'नई राह' चुनती है ।'छुटकारा ' इसी कड़ी की सुंदर कृति है। 'आस का सूरज ' जहाँ चाह वहाँ राह ' सही साबित करता है।
कभी -कभी नारी ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं जो उसे कतई मंजूर नहीं होते पर जायदाद के कागज़ात पर अंगूठा लगाते ही माँ को नीली स्याही से भरी दवात पर नजर पड़ते ही 'नीली स्याही का साँप' रेंगता दिखाई पड़ता है। माता -पिता के सामने हुए बँटवारे का दंश उनको दीवार के इस पार और उस पार रह कर सहना पड़ता है।लेकिन वो भूल जाते हैं कि ' दीवार के कान' भी होते हैं। वहीं पारिवारिक प्राथमिकता के दर्शन ' परिवार ' में स्पष्ट दिखते हैं ।
न्यू इयर पार्टी में अपने-अपने ढँग को व्यक्त करती लघुकथा ' स्पेशल सेलिब्रेशन ' की भी सच्चाई बयान करती है । ' मोहना की बीबी ' सामाजिक प्रसांगिकता प्रस्तुत करती है। माँ बेटे के मिलन की लाजवाब लघुकथा ' नीरजा ' अपने आप में लघुकथा के क्षेत्र में सुनहरे हस्ताक्षर हैं ।
हमारे परिवेश में ' बदलती तस्वीर ' ने बड़ी खूबसूरती से बाप -बेटे के परिस्थिति के बदलते ही आपस में बदलते व्यवहार को बड़ी नजाकत से दर्शाया है। ' गरीब होने का सुख ' बड़ी चतुराई से बांचा गया है कि पाठक भ्रमित हुए बिना नहीं रहता।
सिक्के के दूसरे पहलू मे ' टपरे पर छप्पर ' को घोड़े लीद पर कुकरमुत्ते के समान बताया। आज हमारी बेटी जागरुक होकर सोचती है कि ' अस्तित्व की स्थापना के लिये हमेंशा प्रयासरत रहना चाहिये। 'अनपेक्षित' में नायिका की सोच कि माँ ने काश उसके सुनहरे भविष्य के लिए पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया होता बनिस्बत विवाह की चिंता में किए गये उपाय के। वहीं एक अपवाद स्वरूप पिता बेटी को पढ़ाने के बजाय शेयर में लगाने हेतु 'जोड़ का तोड़' को समझता है।
'स्पर्श ' पुरुषों की मानसिकता को दोहराती सी दीख पड़ती है यहाँ तक की इंटरव्यू देने गई लड़की भी पुरुष के मनभावों को पड़ने में कहाँ गलती नहीं करती ।
कहीं -कहीं लड़की सब लोकलाज भूलकर स्वयं ही लड़के के दरवाज़े 'न डोली न कहार' के बिना ही आ धमकती है। वहीं 'निरमलिया' में नायिका सरल शब्दों में मोहना से अपनी शादी की बात अपनी शर्तों पर रख कर साबित करती है कि आज की नारी अपने अधिकारों के प्रति कितनी सजग है, तो कहीं 'माँ विहिना' बेटी अपने पिता के साये में सामजिक तानों के बीच माँ के प्यार को तरसती है। 'गरीब परमात्मा' में हमारे बच्चे अभी भी हमारे संस्कारों से जुड़ें नजर आते हैं। वहीं आपसी भाईचारे का संदेश देते हैं 'मोहम्मद -नारायण' जी वहीं 'ठठरी पर ईमानदारी' की जीत का परचम बड़े जोर शोर से लहराया गया है।
'कुम्हारी ' भी हमारे संसकारों पर चोट करने में पीछे नहीं रहती। कहीं -कहीं अपवाद स्वरूप अविभाकों द्वारा
बच्चे की पढ़ाई की महत्ता को नगन्य गिनना और काम को प्राथमिकता देना 'लायक' लघुकथा पाठक का मन भर आता है।
संयुक्त परिवार के महत्व को 'यथार्थ बोध' में बाखूबी दर्शाया गया है। वहीं दूसरी तरफ 'अपडेट' के माध्यम से परिवार के सिकुड़ते रिश्ते अब अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं। उन्हें एक वक्त़ भी अपने परिवार के साथ बैठकर कर खाना खाना मंजूर नहीं। इसी के चलते भी कुछ ऐसे किरदार भी हैं 'जीजी, मैं और डायरी ' भाई -बहन के अमिट प्यार की छाप पाठकों के दिल पर पड़ती है।
हमारा अनुमान हमेशा सही हो ये जरूरी नहीं 'पूछताछ' करने पर साबित हो जाता है। 'बदनाम रिश्ते ' इसी बात का सबूत है। गली के बीच 'खुन्नस की लात' का असर जानने को हमेशा आतुर रहेंगे ।
अचंभित करने वाली लघुकथा ' बड़ा व्यापारी ' में बेटी ने व्यापारी के बेटे से शादी करके बड़े व्यापारी को अपनी अक्ल से दाद दे दी।वहीं 'किसान' ने पर उपदेश कुशल बहुतेरे को बाखूबी चरितार्थ किया है।
जाति-पात के भेदभाव को मिटाती 'निर्माल्य ' वर्णनात्मक शैली में सफलता प्राप्त करती है।
सरकारी वादों की पोल खोलती 'कागज़ का गाँव ' सच का बयान करती है। ' विष वमन ' नाटकीय ढंग सेब पाठकों को प्रभावित करती है।
समाचार एजेंसियों का सच 'तलाश एक खास खबर की' में जान कर पाठकवर्ग दाँतों तले अंगुली दबा लेता है। 'कैरियर की कीमत' में पाठकों को दृढ़ निश्चय पलता नज़र आया है। राजनीति के कारनामों को 'भिखमंगा कहीं का' उजागर करने में लघुकथा सफल हुई है। 'साँसों का कैदी' बेरोजगारी की समस्या का ज्वलन्त उदाहरण है। एक तरफ विदेश पढ़ने गए हैं बच्चों का वहीं बसने का समाचार इंतज़ार करती माँ को 'थरथराती बाती' सांत्वना दे पाती कि पाठकवर्ग महसूस कर द्रवित हुए बिना नहीं रह पाता। वहीं घर का मुखिया अपने 'घर की बात' छुपाने का फरमान बड़ी खूबसूरती से दे देता है ।
राजनौतिक क्षेत्र में अंततः 'प्रजातंत्र' अपना असली चेहरा दिखा ही देता है। राजतंत्र पर कटाक्ष करती 'अपना काम बनता' तथा 'सिटी अॅाफ जाॅय ' में गरीब रिक्शेवाले को रिक्शा चलाने पर प्रतिबंध की सूचना से विचलित होनेवाली मनस्थिति तथा अंतर्द्वंद को भलीभाँति दर्शाया गया है। 'वैल मेंटेंड' के अर्थ को सार्थक कर पेड़ पौधों से विहीन धरती सिर्फ चमकदार हाथों में लिये आॅक्सीजन को तरसती जान पड़ती है
'अंधेरों के वजूद ' ने एक बार फिर अंधे कानून की जय कर दी।कीचड़ में सना गुनाहों का देवता अपना प्रकाश फैलाता रहा।
आज हम देखें तो शिक्षा के क्षेत्र में साफगोई नहीं रही। 'डोनेशन' आज भी अमीरों की बैसाखी बनी हुई है।
लेखिका की लघुकथाओं के कथानक अपने शीर्षक को सार्थक करते हैं।क्या राजनीति़क क्षेत्र, पारिवारिक समस्या, समाज में नारी की स्थिती के भिन्न रूप आशा- निराशा से गुजरती हुई का वर्णन किया है। लघुकथा की प्रमुख कसौटी पल विशेष की पकड़ मजबूत है और लघु कलियाँ अपनी -अपनी विशेष सुगंध ,आकार-प्रकार,विविधता बिना काल दोष के महकती चहकती पाठकवर्ग को लुभा लेती हैं।
सारे कथानक हमारे रोजमर्रा के जीवन से प्रभावित हैं चाहे लक्ष्य का टूटता संकल्प हो या पथ के चुनाव का सवाल हो। भोपाल अपनी जानी मानी मकरंद व खुशबू समेटे कमल के समान लेखिका के जहन अभी भी मौजूद है हर कथानक अपने -रंगों व अपनी विशेष खुशबू हर पृष्ठ पर बिखेर रहा है। जिससे पाठकवर्ग अभिभूत हुए बिना नहीं रहता। लघुकथाओं के सीमित पात्रों ने अपनी गरिमा को बनाए रखा। अपने मनोभावों को अनुकूल भाषा से प्रेक्षित किया। लेखिका ने अपनी लघुकथाओं में धरती, आकाश, पहाड़, देवदार के पेड़ों और चाँद सितारे तथा उनके मनोभावों 'मिलन' में बड़े ही सरल भाव से परिभाषित कर लघुकथाओं मे चार चाँद लगा दिए ।
प्रस्तुत लघुकथाओं की भाषा पात्रानुकूल है। इंग्लिश शब्दों का जैसे स्ट्रीट लाइट, काॅलम , न्यू इयर सैलिब्रेशन आदि। हिन्दी के सरल शब्दों का प्रयोग , युग्मक शब्द भी जैसे जीव -जंतु , पाई- पाई, छोटे - छोटे , संग-संग , लेन - देन आदि का प्रयोग बड़ी कुशलतापूर्वक किया है।कुछ लघुकथाएँ बड़ी पर सीमित वर्णनात्मक शैली में भी दीख पड़ती हैं। कुछ संवादात्मक शैली में अपना पूर्ण प्रभाव पाठकों पर डालती है ।
'कुम्हारी' कम संवाद और अधिक वर्णन वाली लघुकथा है। 'दीवार के कान' सबसे छोटी पर सबसे अधिक चुभने वाली संभावनाएँ जगाने वाली है। 'तलाश एक खास खबर की ' संवाद शैली में पाठकों पर अपना प्रभाव डालने में समर्थ है।
कुल मिलाकर 'पथ का चुनाव' अपनी लघुकथाओं की बसंत ऋतु में फूलों की चतुरंगी सुना पाठकों पर सुगंध फैलाने में कामयाब हो अपने पथ का चुनाव करने में आशातीत सफलता प्राप्त करती है । यह पुस्तक पढ़ने व सहेजने की पात्रता रखती है।ये अपनी आंतरिक व बाहरी साज-सज्जा से पाठकों का मन मोह लेती है।
भुपिंदर कौर
36प्रकाश नगर,बिजली कालोनी भोपाल (म.प्र)

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