मुक्तक
*
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं.
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं.
शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'-
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?
२१-३-२०१०
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें