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बुधवार, 31 मार्च 2021

बुंदेली लोककथा कोशिश से दुःख दूर हों

कोशिश से दुःख दूर हों 

किसी समय एक गाँव में एक पटैल और पटैलन रहते थे। वे सब तरह से संपन्न थे पर संतान न होने के कारण दुखी थे।

एक दिन एक साधु भिक्षा माँगने आया। पटैलन ने भिक्षा देकर श्रद्धापूर्वक उसे प्रणाम किया। साधु ने कहा कि तुम्हारे पास सब कुछ है पर तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान नहीं है। तुम दुखी क्यों हो?

पटैलन ने कहा 'साधु महाराज! सब कुछ है पर उसे भोगनेवाला कोई नहीं है तो यह सब किस काम का?'

साधु ने कहा कि माता पार्वती जगत जननी हैं। संतान न होने का दर्द उनसे ज्यादा कौन जान सकता है? वे ही संतान दे सकती हैं। सावन के मंगलवार को मंगला गौरी पूजन और व्रत करो।

पटैलन ने श्रद्धापूर्वक एक पटे पर लाल और सफेद कपड़ा बिछाकर, सफेद कपड़े पर चावल की नौ और लाल कपड़े पर गेहूँ की सोलह छोटी-छोटी ढेर बनाकर पटे पर चावल के दानों के ऊपर गणेश जी की मूर्ति स्थापित की। फिर पटे के एक कोने में गेहूँ के दानों पर जल से भरा कलश रखकर आटे से बनाकर चौमुखा दीपक बनाकर, तेल भरकर जलाए। सोलह ऊदबत्ती जलाकर पहले गणेश जी तथा कलश का पूजन किया। मिट्टी के सकोरे में गेहूँ का आटा रखकर, सुपारी और दक्षिणा की राशि उस में दबा दिया। फिर षोडस मातृका (चाँवल की नौ ढेरियों) का पूजन कर पटे पर मंगला मूर्ति स्थापित कर पानी, दूध, दही, घी, शक्कर तथा शहद का पंचामृत बनाकर स्नान कराया और वस्त्र पहनाकर श्रंगार किया। सोलह प्रकार के पुष्प, माला, पत्ते, फल, पंचमेश, आटे के सोलह लड्डू और दक्षिणा चढ़ाए। आटे के चौमुखे दीपक में रखकर सोलह बाती जलाकर कपूर से आरती करी। उक्त कहानी सुनकर घर की सबसे बड़ी स्त्री को सोलह लड्डू देकर शुभाशीष पाया, नमकरहित एक अनाज का भोजन किया। अगले दिन मंगलागौरी की मूर्ति पानी में विसर्जित की। सोलह मंगलवार तक व्रत कर उद्यापन किया।

श्रद्धापूर्वक व्रत संपन्न कर पटैलन ने माँ पार्वती से संतान सुख देने का वर माँगा। माँ ने कहा पूर्व जन्म के कर्मों के कारण तेरे भाग्य में संतान सुख नहीं है। तुमने श्रद्धापूर्वक व्रत किया है इसलिए इक्कीस वर्षों तक जीवित रहनेवाला पुत्र या विवाह के तुरंत बाद विधवा होनेवाली पुत्री में से एक माँग लो। पटैलन ने इक्कीस वर्ष की आयुवाला पुत्र माँगा। माँ पार्वती ने कहा कि मंदिर के सामने जो आम का वृक्ष है, उसमें गणपति और ऋद्धि-सिद्धि का वास मानकर, श्रद्धापूर्वक प्रणाम करो और उस पेड़ की एक कैरी (आम का कच्चा फल) पत्नी को खिला दो तो उसे यथासमय पुत्र होगा।

पटैल ने कैरी तोड़ने के लिए पत्थर फेंका, वह पत्थर कैरी को न लगकर गणेश जी को लगा। नाराज होकर गणेश जी ने शाप दे दिया कि तुमने अपने स्वार्थ के कारण मुझे पत्थर मारा इसलिए तुम्हारा पुत्र इक्कीस वर्ष बाद साँप के काटने से मर जाएगा। पटैल बहुत दुखी हुआ पर माँ के आदेश का पालन करते हुए कैरी तोड़कर पटैलन को खिला दी। पटैलन ने समय पर सुंदर शिशु को जन्म दिया जिसका नाम मनु रखा।

मनु बीस वर्ष का हुआ तो पटैल उसके साथ व्यापार करने बाहर गया। दोपहर में पिता-पुत्र तालाब किनारे, पेड़ की छाँव में बैठकर भोजन करने लगे। तभी वहाँ दो युवतियाँ कपड़े धोने आईं। एक ने दूसरी से कहा 'मंगला! मैं मंगला गौरी का व्रत करती हूँ, इससे सौभाग्य अखंड रहता है। तू भी यह व्रत किया कर।' दूसरी युवती ने कहा 'ठीक है कमला! मैं भी यह व्रत करूँगी।

पटैल ने यह बातचीत सुनकर सोचा कि कमला से पुत्र का विवाह कराने पर उसका सौभाग्य अखंड रहेगा तो पुत्र की आयु अपने आप बढ़ जाएगी। वह पुत्र के साथ कमला के पिता से मिला। उनकी सहमति से शीघ्र ही मनु के साथ कमला का विवाह हो गया।

कमला विवाह के बाद भी मंगला गौरी का व्रत श्रद्धापूर्वक करती रही। व्रत से प्रसन्न माँ गौरी ने कमला से स्वप्न में कहा कि उसके पति की आयु इक्कीस वर्ष होने पर एक सर्प उसके प्राण लेने आएगा। तुम एक सकोरे में शक्कर मिला दूध और एक मटकी तैयार रखना। साँप जैसे ही दूध पीने लगे, तुम बिना आहट किए उसके फन पर मटकी पलटकर रख देना, वह मटकी में चला जाएगा। बाद में उसे जंगल में छुड़वा देना तो तुम्हारे पति के प्राण बच जाएँगे।

कमला ने ऐसा ही किया। मनु के प्राण बच गए। तब से कमला के साथ गाँव की अन्य महिलाएँ भी मंगलागौरी का व्रत श्रद्धापूर्वक करने लगीं और सुखी हो गईं।

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