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गुरुवार, 18 मार्च 2021

मुक्तिका

मुक्तिका
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मन मंदिर जब रीता रीता रहता है।
पल पल सन्नाटे का सोता बहता है।।
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जिसकी सुधियों में तू खोया है निश-दिन
पल भर क्या वह तेरी सुधियाँ तहता है?
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हमसे दिए दिवाली के हँस कहते हैं
हम सा जल; क्यों द्वेष पाल तू दहता है?
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तन के तिनके तन के झट झुक जाते हैं
मन का मनका व्यथा कथा कब कहता है?
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किस किस को किस तरह करे कब किस मंज़िल 
पग बिन सोचे पग पग पीड़ा सहता है
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