नवगीत
लिखें हम
संजीव
*
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
अब तक जो बीता सो बीता,
अब न आस-घट होगा रीता.
अब न साध्य हो स्वार्थ-सुभीता,
अब न कभी लांछित हो सीता.
भोग-विलास
न लक्ष्य रहे अब,
हया, लाज,
परिहास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
रहें न हमको कलश साध्य अब,
कर न सकेगी नियति बाध्य अब.
स्नेह-स्वेद-श्रम हों आराध्य अब,
कोशिश होगी सतत मध्य अब.
श्रम पूँजी का
भक्ष्य न हो अब,
शोषक हित
खग्रास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
मिल काटेंगे तम की कारा,
उजियारे के हों पौ बारा.
गिर उठ बढ़कर मैदां मारा-
दस दिश में गूंजे जयकारा.
कठिनाई में
संकल्पों का
नव हास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
Sanjiv verma 'Salil'
लिखें हम
संजीव
*
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
अब तक जो बीता सो बीता,
अब न आस-घट होगा रीता.
अब न साध्य हो स्वार्थ-सुभीता,
अब न कभी लांछित हो सीता.
भोग-विलास
न लक्ष्य रहे अब,
हया, लाज,
परिहास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
रहें न हमको कलश साध्य अब,
कर न सकेगी नियति बाध्य अब.
स्नेह-स्वेद-श्रम हों आराध्य अब,
कोशिश होगी सतत मध्य अब.
श्रम पूँजी का
भक्ष्य न हो अब,
शोषक हित
खग्रास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
मिल काटेंगे तम की कारा,
उजियारे के हों पौ बारा.
गिर उठ बढ़कर मैदां मारा-
दस दिश में गूंजे जयकारा.
कठिनाई में
संकल्पों का
नव हास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
Sanjiv verma 'Salil'
7 टिप्पणियां:
सुशील गुरु
बहुत अच्छा लिखा है.
Vijay Prabhat Proutist
Bahut sundar rachna
shar_j_n
आदरणीय आचार्य जी,
सुघड़ गीत है। थोडा कम आसान है इस बार, पर मुश्किल भी नहीं :)
रहें न हमको कलश साध्य अब,
कर न सकेगी नियति बाध्य अब.
स्नेह-स्वेद-श्रम हों आराध्य अब, --- ये सब सुन्दर!
कोशिश होगी सतत मध्य अब.
श्रम पूँजी का
भक्ष्य न हो अब,
शोषक हित
खग्रास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
*
मिल काटेंगे तम की कारा,
उजियारे के हों पौ बारा.
गिर उठ बढ़कर मैदां मारा- -- वाह! द्रुत गति ताल सी है !
दस दिश में गूंजे जयकारा.
कठिनाई में
संकल्पों का --------- यहाँ इसके बाद एक पंक्ति छूट गई है आचार्य जी!
नव हास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
सादर शार्दुला
कठिनाई में
संकल्पों का
कठिनाई में
संकल्पों का
दीप जला
नव हास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
शार्दूला जी
वन्दे मातरम
आपकी पारखी दृष्टि को नमन.
छूटी हुई पंक्ति जोड़ दी है. आपको हुई असुविधा हेतु खेद है।
Indira Pratap via yahoogroups.com
'नव गति, नव लय , ताल छंद नव , जीवन में भर दे , वर दे !
वीना वादिनी वर दे |' महाकवि निराला | मंगल कामनाओं सहित दिद्दा
Shishir Sarabhai
वाह..वाह.....क्या खूब दोहे है
बधाई संजीव जी !
शिशिर
Kusum Vir via yahoogroups.com
कठिनाई में
संकल्पों का
नव हास लिखें हम.
नया आज
इतिहास लिखें हम...
बहुत सुन्दर नवगीत आचार्य जी !
वाह ! क्या बात ! क्या बात !
सादर,
कुसुम वीर
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