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शुक्रवार, 17 मई 2013

bundeli muktika baat karo... acharya sanjiv verma 'salil'

बुन्देली मुक्तिका:
बात करो ..
संजीव
*
बात करो जय राम-राम कह।
अपनी कह औरन की सुन-सह।।

मन खों रखियों आपन बस मां।
मत लालच मां बरबस दह-बह।।

की की की सें का-का कहिए?
कडवा बिसरा, कछु मीठो गह।।

रिश्ते-नाते मन की चादर।
ढाई आखर सें धोकर-तह।।

संयम-गढ़ पै कोसिस झंडा
फहरा, माटी जैसो मत ढह।।

खैंच लगाम दोउ हातन सें
आफत घुड़वा चढ़ मंजिल गह।।

दिल दैबें खेन पैले दिलवर
दिल में दिलवर खें दिल बन रह।।
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

2 टिप्‍पणियां:

madhu gupta ने कहा…

Madhu Gupta via yahoogroups.com

संजीव जी
एक से बढ़ कर एक रचनाएँ पढ़ने को मिली
बुन्देली बात न करियो , बांच सको तो बांच लो , दोहे मुक्तिका ---
तीनों में रचनाकार का जादू सिर चढ़ कर बोलता नज़र आया लगता है कि आप कभी भी किसी भी विषय भाषा तथा विधा में लिख सकते है आपको व आपकी सुन्दर स्पष्ट वाणी को हमारा प्रणाम
मधु

sanjiv ने कहा…

मधु जी
आपका आभार। आप सब का संग-साथ ही लिखवा लेता है। मैं खुद ही नहीं जान पाता कि कब क्या सामने आएगा?