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बुधवार, 15 मई 2013

lekh: pashchim kee vaigyanik unnati ke mool men hindu ank ganit dr. madhusudan





     पश्चिम की वैज्ञानिक उन्नति के मूल में है हिन्दू अंक गणित

डॉ. मधुसूदनroman                 
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मधुसूदनजी अभियांत्रिकी में एम.एस. तथा पी.एच.डी. हैं ,  प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी शोधकर्ता, प्रखर हिन्दी विचारक है। संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती  संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) के  आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था युनिवर्सिटी ऑफ मॅसाच्युसेटस (UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS) में निर्माण अभियांत्रिकी के प्रोफेसर हैं।

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*डॉ. डेवीड ग्रे -(१)”वैज्ञानिक विकास में भारत हाशिये पर की टिप्पणी नहीं है।”
*(२)”वैश्विक सभ्यता में भारत का महान योगदान नकारता इतिहास विकृत है।”
*(३)सर्वाधिक विकसित उपलब्धियों की सूची, भारतीय चमकते तारों की. आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीर, भास्कर, माधव के योगदानों की।”
**(४)”पश्चिम विशेषकर भारत का ऋणी रहा है।
*प्रो. स्टर्लिंग किन्नी –(५) “हिंदू अंकों के बिना, विज्ञान विकास बिलकुल असंभव।
(६) “किसी रोमन संख्या का वर्ग-मूल निकाल कर दिखाएँ।”
*लेखक: (७) *अंको के बिना, संगणक भी, सारा व्यवहार ठप हो जाएगा।

अनुरोध: अनभिज्ञ पाठक,पूर्ण वृत्तांत सहित जानने के लिए, शेष आलेख कुछ धीरे-धीरे आत्मसात करें। कुछ कठिन लग सकता है।

(एक)सारांश:
गत दो-तीन सदियों की पश्चिम की, असाधारण उन्नति का मूल अब प्रकाश में आ रहा है, कि, उस उन्नति के मूल में, हिन्दू अंकों का योगदान ही, कारण है।
इन अंकों का प्रवेश, पश्चिम में, अरबों द्वारा कराया होने के कारण, गलती से, उन्हें अरेबिक न्युमरल्स माना जाता रहा।
पर, वेदों में उल्लेख होने के कारण, और अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से (गत २-३ दशकों में) इस भ्रांति का निराकरण होकर अब स्वीकार किया जाता है, कि तथाकथित ये अरेबिक अंक, वास्तव में हिन्दू-अंक ही थे। साथ में एक-दो विद्वान भी, मान रहें हैं, कि, हमारी गणित की अन्य शाखाएं भी इस उत्थान में मौलिक योगदान दे रही थी।

(दो) हिंदु अंको के आगमन पूर्व:
हिंदु अंको के आगमन पूर्व, रोमन अंकों का उपयोग हुआ करता था। निम्न तालिका में कुछ उदाहरण दिए हैं; जो अंकों को लिखने की पद्धति दर्शाते हैं। आप ने घडी में भी, ऐसे रोमन अंक I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII, IX, XI, XII देखे होंगे। ये क्रमवार, १,२,३,४,५,६,७,८,९,१०, ११. १२ के लिए चिह्न होते हैं।
बडी संख्याएँ, निम्न रीति से दर्शायी जाती हैं।
3179 =MMMCLXXIX, 3180=MMMCLXXX
3181 =MMMCLXXXI, 3182=MMMCLXXXII
3183 =MMMCLXXXIII, 3184 =MMMCLXXXIV
3185 =MMMCLXXXV, 3186 =MMMCLXXXVI
3187 =MMMCLXXXVII, 3188 =MMMCLXXXVIII
3189 =MMMCLXXXIX, 3190 =MMMCXC

रोमन अंको की कठिनाई थी; उनका जोड, घटाना, गुणाकार, भागाकार इत्यादि, जैसी सामान्य प्रक्रियाएं कठिन और कुछ तो असंभव ही होती थी। फिर वर्गमूल, घनमूल और अनेक गणनाएँ तो असंभव ही थी।
जिन्हें सन्देह हो, उन्हें, निम्न रोमन संख्याओं का गुणाकार कर के, देखना चाहिए।
(MMMCLXXXVIII) x{ MMMCLXXXVI} =?

वास्तव में ये हैं (३१८८)x(३१८६)= १०१५६९६८
एक मित्र जो तर्क-कुतर्क देने में आगे रहते हैं। उन्हें जब मैंने ऐसा प्रश्न पूछा, तो कुछ समय तो रोमन न्युमरल देखने लगे। पर फिर विषय को छोडकर, नया ही तर्क देना प्रारंभ किया। कहने लगे कि, यदि हम अंक ना देते, तो कोई और दे देता ! उस में कौनसा बडा तीर मार लिया?
सच्चाई को दृढता पूर्वक, अस्वीकार करने वाले, ऐसे ह्ठाग्रहियों को देखकर हँसी भी आती है, पर दुःख अधिक होता है, कि, हमारे ही बंधुओं की ऐसी बहुमति में हम, बदलाव कैसे लाएंगे? भारत का, दैवदुर्विपाक ही मानना पडेगा।

(तीन)इसमें कौन सी बडी बात है? ऐसा सोचनेवालों को अनुरोध करता हूँ। सोच कर बताइए कि, सारे संसार से हिंदु अंक हटा देने से क्या होगा?
अंग्रेज़ी में लिखे जानेवाले, 1.2.3.4 इत्यादि भी; जो, हिंदु अंकों की परम्परा से ही, उधार लिए गए हैं। साथ-साथ इन्हीं अंकों का अनुकरण करने वाली, किसी भी लिपि में लिखे गए, अंकों को हटा दीजिए। आज सारा शिक्षित विश्व हिंदू अंकों का ही अनुकरण करता है। उनकी लिपि केवल अलग होती है।
तो सारे संसार में, सैद्धान्तिक रूप से, एकमेव (दूसरे कोई नहीं) हिन्दू अंक ही रूढ हो चुके हैं। जी, हाँ। आज पूरे संसार में गिनती के लिए केवल हिंदु अंकों का ही अनुकरण होता है। हरेक देश में, दस की संख्या, निर्देशित करने के लिए उनके एक के चिह्न के साथ शून्य का प्रयोग [१०] होता है।
अंकों के चिह्न उनके अपने होते हैं, पर प्रणाली हिंदू अंकों का अनुकरण ही होती है। उन सभी अंकों को हटा दीजिए, तो क्या होगा? सोचिए।

उत्तर: महाराज! सारे कोषागार, धनागार, वाणिज्य व्यापार, विश्व विद्यालय, शालाएँ, जनगणना, उस पर आधारित जनतंत्र, और संगणक (कंप्युटर) भी ………… सारा का सारा जीवन व्यवहार ठप हो जाएगा। नहीं? क्या आप कोई “मैं ना मानूं, नामक-हठ-योगी” संप्रदाय के सदस्य तो नहीं ना?

(चार) ऐसा योगदान है, हिन्दू अंकों का-
ऐसा योगदान है, हिन्दू अंकोंका-और हिन्दु गणित का। जिसका लाभ बिना अपवाद संसार की सारी शिष्ट भाषाएँ और सारे देश ले ही रहे हैं।आपकी खिचडी अंग्रेज़ी भी। और सारे विज्ञान का विशालकाय विकास भी जिन गणनाओं के कारण हुआ है, वे
सारी हिंदु अंकों के गणित पर ही आधार रखती है। यही पद्धति उस विकास का कारण है।
इन्हीं अंकोपर उच्च गणित आधारित है, संगणक की सबसे ऊपर वाली कुंजियाँ भी, आप का, बँक का हिसाब, लंदन के राजमहल की संख्या, वॉशिंग्टन का पीन कोड, झिपकोड, आपका मोबाईल नम्बर, जिन लोगों को भारत तुच्छ देश लगता है, उनकी जन्म तिथि भी केवल एक और एक ही प्रणाली पर निर्भर करती है।
हिमालय के शिखर पर जाकर शिवजी का शंख फूँक कर सारे विश्व को कहने का मन करता है, हाँ, उन उधारी शब्दों पर जीवित अंग्रेज़ी के गुलामों को भी कहूंगा । और चुनौति दूंगा, कि इतनी भारतीयता के प्रति घृणा है, तो कोई और प्रणाली उत्पन्न करें। हिंदू अंकों का, वैदिक अंको का, भारतीय अंकों का प्रयोग ना करें।

(पाँच) कुछ प्रामाणिक पश्चिमी विद्वान भी हैं।
उनमें से एक थे, निर्माण अभियांत्रिकी की उच्च शिक्षा की पाठ्य पुस्तक के विद्वान लेखक, प्रोफेसर स्टर्लिंग किन्नी । जो रेन्सलिएर पॉलीटेक्निक इन्स्टिट्यूट में निर्माण अभियान्त्रिकी के प्रोफेसर थे।
वे कहते हैं, अपनी पाठ्य पुस्तक के ७ वें पन्नेपर। कि,
उद्धरण ==> “एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाश में आया, जो, अरबों ने,लाया होने से अरबी अंक के नामसे जाना जाता है। वह है, हमारे अंक(नम्बर) जो, अमजीर, भारत में, (६०० इ. स.)में प्रयोजे जाते थे। ये अंक अरबी गणितज्ञों ने अपनाकर, युरप में फैलाए।, इस लिए, पश्चिम, उन्हें (गलतीसे) एरॅबिक अंक मानता था। इन हिंदू अंको की, उपयुक्तता रोमन अंकों (जो पहले थे) की अपेक्षा अत्यधिक है। और इन अंकों के बिना, आधुनिक विज्ञान का विकास बिलकुल (?)असंभव लगता है।”
“The advantage of these Hindu numbers over both the Greek and Roman system is very great, and it is quite unlikely that modern science could exist without them” आगे कहते हैं, कि,संदेह हो, तो किसी रोमन में लिखी, संख्या का वर्ग-मूल निकाल कर दिखाएँ।”<===उद्धरण अंत

(पाँच) दूसरे विद्वान, डेविड ग्रे
वे, “भारत और वैज्ञानिक क्रांति में”– लिखते हैं :
डॉ. डेवीड ग्रे
उद्धरण===>”पश्चिम में गणित का अध्ययन लम्बे समय से कुछ सीमा तक राष्ट्र केंद्रित, पूर्वाग्रहों से प्रभावित रहा है, एक ऐसा पूर्वाग्रह जो प्रायः बड़बोले जातिवाद के रूप में नहीं पर (पश्चिम-रहित) भारत के और अन्य सभ्यताओं के वास्तविक योगदान को नकारने या मिटाने के प्रयास के रूप में परिलक्षित होता है।
पश्चिम अन्य सभ्यताओं का विशेषकर भारत का ऋणी रहा है। और यह ऋण ’’पश्चिमी’’ वैज्ञानिक परंपरा के प्राचीनतम काल – ग्रीक सम्यता के युग से प्रारंभ होकर आधुनिक काल के प्रारंभ, पुनरुत्थान काल तक अबाधित रहा है – जब यूरोप अपने अंध-युग से जाग रहा था।”
इसके बाद डा. ग्रे भारत में घटित गणित के सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकसित उपलब्धियों की सूची बनाते हुए भारतीय गणित के चमकते तारों का, जैसे आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीर, भास्कर और माधव के योगदानों का संक्षेप में वर्णन करते हैं।
यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के विकास में भारत का योगदान
अंत में वे बल पूर्वक कहते हैं -”यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के विकास में भारत का योगदान केवल हाशिये पर लिखी जाने वाली टिप्पणी नहीं है जिसे आसानी से और अतार्किक रीति से, यूरोप केंद्रित पूर्वाग्रह के आडम्बर में छिपा दिया गया है। ऐसा करना इतिहास को विकृत करना है और वैश्विक सभ्यता में भारत के महानतम योगदान को नकारना है।”

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