धर्म और विज्ञान: २
संजीव *
धारण करने योग्य जो, कहा गया वह धर्म।
सर्व लोक हित जो- करें धारण, समझें मर्म।।
धारण नाद को मूल कह, करता अंगीकार।
शब्द ब्रम्ह है ज्ञान का, वाहक नहीं विरोध।
नहीं व्यक्तिगत आचरण, पंथ- धर्म पर्याय।
धर्म-और धार्मिक नहीं, हो सकते हैं एक।
हर युग का जो सत्य है, वही धर्म का अंग।
अणु-सूत्रों को समाहित, किये हुए ऋग्वेद।
वास्तु सिविल इंजीनियरिंग, क्यों न मानिए?खेद।।
मिले पुराणों में कई, नगर-न्यास-सिद्धांत।
कंद मूल जड़ पत्तियाँ मृदा, मिटातीं रोग।
धर्म प्रकृति को माँ कहे, पूजें-रक्षें मीत।
धर्म और विज्ञानं हैं, सिक्के के दो पक्ष।
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2 टिप्पणियां:
achal verma
मुझे इस रचना से बहुत कुछ मिला जो
मैं अबतक नहीं जानता था।
आभारी हूँ आपका , आचार्य जी।....अचल.....
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