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बुधवार, 15 मई 2013

geet: pran hi shabdit hue acharya sanjiv verma 'salil'


गीत (वाक्यांश पूर्ति) :
प्राण ही शब्दित हुए…
संजीव
*
गगन रीझा, गात ऊषा का, गुलाबी हो गया,
पवन चूमे बेल, चिर अनुराग गुपचुप बो गया।
थपक वसुधा को जगाता, रवि करों से हुलसकर-
सलिल सिकता से लिपटकर, पंक सारा धो गया।
हुआ मूर्तित जब अमूर्तित, भाव तब विगलित हुए
पञ्च तत्वों में पुलककर, प्राण ही शब्दित हुए...
*
राग ने रस सँग रचाई, रास रागिनि छेड़कर,
लास लख अनुप्रास भागा, लय किवड़िया भेड़कर।
अनुपमा उपमा यमक की, दिवानी जब से हुई-
अन्तरा को गीत-मुखड़ा, याद करता हेड़कर।
द्वैत तज अद्वैत वर कर, चाव रूपायित हुए
काव्य तत्वों में हुलसकर, प्राण ही शब्दित हुए...
*
संगमर्मर चन्द्र किरणों का, परस पा तर गया,
नर्मदा की लहरियों में,  नाद कलकल भर गया।
ज़िंदगी पाने की खातिर, हौसला उम्मीद पर-
प्राण हँसकर कर निछावर, बाँह में भर मर गया।
राग तत्वों में 'सलिल' वैराग अनुवादित हुए
पञ्च तत्वों में उमगकर प्राण ही शब्दित हुए...
*


Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

4 टिप्‍पणियां:

chandawarkarsm@gmail.com ने कहा…

Sitaram Chandawarkar via yahoogroups.com


अद्भूत!
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर

sanjiv ने कहा…

आपकी गुणग्राहकता को नमन

Mamta Sharma ने कहा…

Mamta Sharma via yahoogroups.com

आदरणीय सलिल जी दिद्दा का अर्थ नहीं समझ आया .
दार्शनिक रचना मन को सोचने पर विवश करने वाली .धन्यवाद हमें पढवाने के लिए .
सादर ममता

shar_j_n ने कहा…

shar_j_n

आदरणीय आचार्य जी,
आप ही केशाब्दों में क्या बात, क्या बात, क्याबात! :)

गगन रीझा, गात ऊषा का, गुलाबी हो गया,
पवन चूमे बेल, चिर अनुराग गुपचुप बो गया।
थपक वसुधा को जगाता, रवि करों से हुलसकर-
सलिल सिकता से लिपटकर, पंक सारा धो गया।
हुआ मूर्तित जब अमूर्तित, भाव तब विगलित हुए
पञ्च तत्वों में पुलककर, प्राण ही शब्दित हुए... बहुत बहुत सुन्दर!
*

लास लख अनुप्रास भागा, लय किवड़िया भेड़कर। -- ये पंक्ति बहुत ही प्यारी!
अन्तरा को गीत-मुखड़ा, याद करता हेड़कर। --- :)

*

सादर शार्दुला