कुल पेज दृश्य

बुधवार, 15 मई 2013

geet: baton se kya hota hai? acharya sanjiv

दिद्दा को सादर समर्पित :

गीत:
बातों से क्या होता है?
संजीव
*
रातों का अँधियारा रुचता तनिक नहीं
दिल कहता है: 'इसको दूर हटाना है'
पर दिमाग कहता: 'अँधियारा आवश्यक
यह सोचो उजयारा खूब बढ़ाना है '
यह कहता: 'अँधियारा अपने आप हुआ'
वह बोला: 'उजियारा करना पड़ता है'
इसने कहा: 'घटित जो हो, सो होने दो
मन पल में हँसता है, पल में रोता है
बात न करना, बातों से क्या होता है?'

घातों-प्रतिघातों से ही इतिहास बना
कभी नयन में अश्रु, अधर पर हास बना
कभी हर्ष था, कभी अधर का त्रास बना
तृप्ति बना, फिर अगले पल नव प्यास बना
स्वेद गिरा, श्रम भू में बोता है फसलें
नभ पानी बरसा, कहता भू से हँस लें
अंकुर पल्लव कली कुसुम फल आ झरते
मन 'बो-मत बो' व्यर्थ बात, कह सोता है?
बात न जाने, बातों से क्या होता है?'

खातों का क्या?, जब चाहो बन जाते हैं
झुकते-मिलते हाथ कभी तन जाते हैं
जोड़-जोड़ हारा प्रयास, थक-रुका नहीं
बात बिना क्या कुछ निर्णय हो पाते हैं?
तर्क-वितर्क, कुतर्कों को कर दूर सकें
हर शंका का समाधान कर तभी हँसें
जब बातें हों, बातों से बातें निकलें
जो होता है, बातों से ही होता है
*

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

9 टिप्‍पणियां:

Sushil Guru, Bhopal ने कहा…

सुशील गुरु

Bahut achchha likha, salil ji.

sanjiv ने कहा…

bandhuvar apko achhha laga to mera srijan karn aur kavi dharn donon safal hue. dhanyavad.

indira pratap ने कहा…

Indira Pratap via yahoogroups.com

संजीव भाई,
कविता सुहानी बनाई|
बातों से क्या होता है,
होता है, तब होता है,
जब कर गुजरो जो
असंभव होता है|
तब ही बातों से होता है|
कविता समर्पित करने के लिए धन्यवाद | दिद्दा

Mahipal Tomar ने कहा…

Mahipal Tomar via yahoogroups.com

इस रचना में कुछ ऐसा है ,जो बार-बार पढने को उकसाता है ।

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

अनूठी रचना ................!

सादर,
दीप्ति

chandawarkarsm@gmail.com ने कहा…

Sitaram Chandawarkar via yahoogroups.com

आचार्य सलिल जी,
अति सुंदर!
बरसों पहले पढई के दिनों यह पढा था:
"ज्यों केले के पात पात में पात
त्यों सज्जनन के बात बात में बात"
इस को थोडा बदल कर कहूंगा
"ज्यों केले के पात पात में पात
त्यों सलिल जी के बात बात में बात"
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर

madhuvmsd@gmail.com ने कहा…

Madhu Gupta via yahoogroups.com


संजीव जी आपकी दिद्दा को समर्पित तथा बुन्देली भाषा में नेतायो पर लिखी दोनों ही कृतियाँ लाजवाब है
मधु
सहजता से लिखा
धीरे से कहा
पर बात बहुत घात है
जीवन जीने का
देश के हालात का
पैना किया आघात है |

Mahipal Tomar ने कहा…

Mahipal Tomar via yahoogroups.com

आचार्य जी
बार -बार पढने के पीछे 'समझ में न आना', और जीवन दर्शन के प्रवाह की सातत्यता में, अवरोध और अचानक 'u-turn' का होना था। रचना मनन योग्य है।
बधाई ,शुभेक्षु
महिपाल

(एक जिज्ञासा भी-सुश्री इंदिरा प्रताप जी का क्या कोई संबंध सागर से भी रहा है?
यदि उत्तर हाँ में हो तो मेरा प्रणाम उन तक पहुंचा दे)

बातों से क्या होता है?

मन 'बो-मत बो'व्यर्थ बात, कह सोता है?

बात न जाने, बातों से क्या होता है?'

जब बातें हों, बातों से बातें निकलें
जो होता है, बातों से ही होता है

shar_j_n ने कहा…

shar_j_n

आदरणीय आचार्य जी,
सबसे पहले आपसे एक गुज़ारिश कि आप कृपया गीत का शीर्षक मेल की सब्जेक्ट में लिख दिया करें . धन्यवाद!

कभी हर्ष था, कभी अधर का त्रास बना
तृप्ति बना, फिर अगले पल नव प्यास बना
स्वेद गिरा, श्रम भू में बोता है फसलें
नभ पानी बरसा, कहता भू से हँस लें
अंकुर पल्लव कली कुसुम फल आ झरते

मन 'बो-मत बो' व्यर्थ बात, कह सोता है?
बात न जाने, बातों से क्या होता है?' --- ओह! अति सुन्दर पद !
सादर शार्दुला