बुन्देली गीत;
संजीव
*
आ खें सेहर गाँव पछता रओ,
नाहक मन खों चैन गँवा दओ....
*
छोर खेत-खलिहान आओ थो,
नैनों मां सपना सजाओ थो।
सेहर आओ तो छूटे अपने,
हाय राम रे! टूटे सपने।
धोखा दें खें, धोखा खा रओ....
*
दूनो काम, मजूरी आधी,
खाज-कोढ़ मां रिस्वत ब्याधी।
सुरसा कहें मूं सी मंहगाई-
खुसियाँ जैसे नार पराई।
आपने साए से कतरा रओ....
*
राह हेरती घर मां तिरिया,
रोत हटी बऊ आउत बिरिया।
कब लौं बहले बिटिया भोली?
खुद सें खुद ही आँख चुरा रओ....
***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
संजीव
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आ खें सेहर गाँव पछता रओ,
नाहक मन खों चैन गँवा दओ....
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छोर खेत-खलिहान आओ थो,
नैनों मां सपना सजाओ थो।
सेहर आओ तो छूटे अपने,
हाय राम रे! टूटे सपने।
धोखा दें खें, धोखा खा रओ....
*
दूनो काम, मजूरी आधी,
खाज-कोढ़ मां रिस्वत ब्याधी।
सुरसा कहें मूं सी मंहगाई-
खुसियाँ जैसे नार पराई।
आपने साए से कतरा रओ....
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राह हेरती घर मां तिरिया,
रोत हटी बऊ आउत बिरिया।
कब लौं बहले बिटिया भोली?
खुद सें खुद ही आँख चुरा रओ....
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
2 टिप्पणियां:
Kusum Vir via yahoogroups.com
बहुत ही रोचक और मनभावन बुन्देली गीत, आ० सलिल जी l
कुसुम वीर
Kanu Vankoti
संजीव भाई, मनोहर गीत के लिए ढेर तालियाँ ...
सादर,
कनु
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