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गुरुवार, 23 मई 2013

bundeli muktika: -- acharya sanjiv verma 'salil'

बुन्देली मुक्तिका :
काय रिसा रए
संजीव
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो

कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो

ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो

मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो

तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
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1 टिप्पणी:

Rekha Srivastava बहुत सुदर लगी ये पंक्तियाँ . ने कहा…

Rekha Srivastava

बहुत सुदर लगी ये पंक्तियाँ .