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गुरुवार, 23 मई 2013

dharm aur vigyan 1 -sanjiv

धर्म और विज्ञान १
संजीव
*
धर्म सनातन सत्य है, सत्य कहे विज्ञान
परिवर्तन विज्ञान की सदा रहा पहचान

अनहद या बिग बैंग में तनिक नहीं है फर्क
रव से कण पैदा हुआ, कहते श्रृद्धा-तर्क

कण के दो आवेश के प्रकृति-पुरुष हैं नाम
मिलें-अलग हों, फिर मिलें रचना सतत ललाम

विधि ब्रम्हा-बुधि शारदा, भाव-क्रिया संयोग
विष्णु विषाणु पचा, सके श्री लक्ष्मी को भोग

शिव विष को धर कंठ में, हुए चन्द्र के नाथ
शिवा समाईं अग्नि में, प्रगटीं लें दस हाथ

रक्ष-संकटों को दिया मार, दिए नव मूल्य
मानव दानव हो नहीं, हो न सृष्टि निर्मूल्य

आदि शक्तियों का नहीं, हम सा तन-आकार
गुण-धर्मों पर चित्र हैं, वे थे निर-आकार

गुण-धर्मों की विविधता, सृजे नित नए रूप
पञ्च तत्व को जानिए, सृजन-चक्र का भूप

जल-जलचर उत्पत्ति को, कहें मत्स्य अवतार
जल-थल पर कच्छप जिया, हुआ सृष्टि विस्तार

थल-जल में वाराह ने, किया क्रिया व्यापार
नरसिंह को थल ही रुचा, अतुलित बल आगार

वामन पशु से मनुज तक, यात्रा का गंतव्य
परशुराम के मूल्य थे, मानव का भवितव्य

राम मनुज रक्षक रहे, दनुज हुए सब वध्य
कृष्ण इंद्र से लड़ सके, रह भूवासी-मध्य

सम्यक संयम का लिए आये बुद्ध विचार
महावीर को हेय था संग्रह का आचार

धर्म या कि विज्ञान हैं एक सत्य दो नाम
राह भले दिखतीं अलग, मिले एक परिणाम

सत्ता रचती है सदा, अपने हित की राह
जनता करती है नहीं, बहुत अधिक परवाह

दीप जलाते ही तिमिर, छिपता नीचे आप
ज्योति बुझे तो निमिष में, जाता है तम व्याप

धर्म और विज्ञान हैं, व्याख्या-विधियाँ मात्र
उतना समझे सत्य वह, जो जितना है पात्र
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6 टिप्‍पणियां:

Mahipal Tomar via yahoogroups.com ने कहा…

Mahipal Tomar via yahoogroups.com

रस-खान, सिद्ध,चिंतक कवि हार्दिक बधाई, बधाई इसलिए भी आप अपनी प्राप्त 'कवित्त्व-शक्ति' का उपयोग समाज से जुड़े मुद्दों को, साहित्य से जुडी जानकारी को बड़ी जिम्मेवारी से इस मंच पर प्रस्तुत कर मुझ जैसे सामान्य-जन(जनों) का बड़ा भला भी करते हैं। जिस सन्दर्भ ने आपको यह रचना के लिए प्रेरित किया है, उसके लिए भी ई-कविता पर यह कविता और भी समीचीन है, क्योंकि इसकी पाठक संख्या,'चिंतन' मंच से काफी ज्यादा है। बहुत ही तार्किक ढंग से धर्म और विज्ञानं पर आपकी कविता बार-बार
पढ़ने को आकर्षित करती है।

Mahesh Dewedy via yahoogroups.com ने कहा…

Mahesh Dewedy via yahoogroups.com

सलिल जी,
दोहे निश्चय ही श्रेष्ठ कोटि के हैं. बहुत बधाई.परन्तु इतना अवश्य कहूँगा की मैंने अज तक किसी धर्म अथवा धार्मिक व्यक्ति में कम्पयूटर बनाने के फार्मूले उद्भूत होते नहीं देखे है।
हाँ धर्म के नाम पर ज्ञान के प्रसार को रोकने के
प्रयत्न सदैव होते रहे हैं

महेश चन्द्र द्विवेदी

sanjiv ने कहा…

धन्यवाद महिपाल जी, बना रहे आशीष।
कलम रचे कुछ सार्थक, कृपा करें जगदीश।।

vijay3@comcast.net via ने कहा…

vijay3@comcast.net via yahoogroups.com

अति सुन्दर...अति सुन्दर !

विजय

shardula naugaza ने कहा…

shar_j_n

आदरणीय आचार्य जी,

नमन! नमन! नमन!
अति अति सुन्दर! मन प्रसन्न हो गया पढ़ के !

और ये अतिउत्तम उपसंहार!

धर्म और विज्ञान हैं, व्याख्या-विधियाँ मात्र
उतना समझे सत्य वह, जो जितना है पात्र

सादर शार्दुला

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

धर्म और विज्ञान की विशद, विलक्षण व्याख्या l
कुसुम वीर