बुन्देली मुक्तिका:
बात नें करियो
संजीव
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..
होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..
जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..
घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
3 टिप्पणियां:
deepti gupta via yahoogroups.com
वाह....वाह............कविता संजीव जी !
कविता आपकी टनाटनी ...............*=D> applause
हनाहनी का अर्थ नहीं समझ पाए !
दीप्ति जी
धन्यवाद
हनाहनी = मारामारी
मुठिका एक महाकपि हनी, रुधिर बमत धरनी ढनमनी- तुलसीदास, सुन्दरकाण्ड
Kusum Vir via yahoogroups.com
आ० आचार्य जी,
बहुत ही मनभावन बुन्देली मुक्तिका l
मुझे अंतिम मुक्तिक बहुत भाई l
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
सादर,
कुसुम वीर
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