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गुरुवार, 16 मई 2013

bundeli, muktika baat nen kariyo acharya sanjiv verma 'salil'


बुन्देली मुक्तिका:
बात नें करियो
संजीव
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..

होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..

जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..

घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..

सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
================

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

3 टिप्‍पणियां:

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

वाह....वाह............कविता संजीव जी !

कविता आपकी टनाटनी ...............*=D> applause

हनाहनी का अर्थ नहीं समझ पाए !

sanjiv ने कहा…

दीप्ति जी
धन्यवाद
हनाहनी = मारामारी

मुठिका एक महाकपि हनी, रुधिर बमत धरनी ढनमनी- तुलसीदास, सुन्दरकाण्ड

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आ० आचार्य जी,
बहुत ही मनभावन बुन्देली मुक्तिका l
मुझे अंतिम मुक्तिक बहुत भाई l

सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..

सादर,
कुसुम वीर