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रविवार, 12 मई 2013

Elegy maa acharya sanjiv verma 'salil'

स्मृति-गीत 
माँ के प्रति:
संजीव
*
अक्षरों ने तुम्हें ही किया है नमन
शब्द ममता का करते रहे आचमन
वाक्य वात्सल्य पाकर मुखर हो उठे-
हर अनुच्छेद स्नेहिल हुआ अंजुमन

गीत के बंद में छंद लोरी मृदुल
और मुखड़ा तुम्हारा ही आँचल धवल
हर अलंकार माथे की बिंदी हुआ-
रस भजन-भाव जैसे लिए चिर नवल

ले अधर से हँसी मुक्त मुक्तक हँसा
मौन दोहा हृदय-स्मृति ले बसा
गीत की प्रीत पावन धरोहर हुई-
मुक्तिका ने विमोहा भुजा में गसा

लय विलय हो तुम्हीं सी सभी में दिखी
भोर से रात तक गति रही अनदिखी
यति कहाँ कब रही कौन कैसे कहे-
पीर ने धीर धर लघुकथा नित लिखी

लिपि पिता, पृष्ठ तुम, है समीक्षा बहन
थिर कथानक अनुज, कथ्य तुमको नमन
रुक! सखा चिन्ह कहते- 'न संजीव थक'
स्नेह माँ की विरासत हुलस कर ग्रहण

साधना माँ की पूनम बने रात हर
वन्दना ओम नादित रहे हर प्रहर
प्रार्थना हो कृपा नित्य हनुमान की
अर्चना कृष्ण गुंजित करें वेणु-स्वर

माँ थी पुष्पा चमन, माँ थी आशा-किरण
माँ की सुषमा थी राजीव सी आमरण
माँ के माथे पे बिंदी रही सूर्य सी-
माँ ही जीवन में जीवन का है अवतरण
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

16 टिप्‍पणियां:

Ravindar kumar ने कहा…

GREAT verma ji

Ravindar kumar

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी,
माँ के प्रति अद्भुत स्मृति-गीत लिखा है आपने l
शब्द सौष्टव,साहित्य सौन्दर्य, व्याकरण गरिमा और भाषा विज्ञानं के
विभिन्न अंगों का समावेश करके आपने माँ के प्रति जो भाव पूर्ण गीत लिखा है,
वह अनन्य है, अप्रतिम है, अनुपमेय है l

निम्नांकित पंक्तियाँ मन को बेहद भायीं :

ले अधर से हँसी मुक्त मुक्तक हँसा
मौन दोहा हृदय-स्मृति ले बसा
गीत की प्रीत पावन धरोहर हुई-
मुक्तिका ने विमोहा भुजा में गसा

लय विलय हो तुम्हीं सी सभी में दिखी
भोर से रात तक गति रही अनदिखी
यति कहाँ कब रही कौन कैसे कहे-
पीर ने धीर धर लघुकथा नित लिखी

वाह ! क्या बात ! क्या बात !
सादर,
कुसुम वीर

sanjiv ने कहा…

आपकी पारखी दृष्टि का कायल हूँ . हार्दिक धन्यवाद .

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

ढेर सराहना स्वीकारे ..................!

सादर,
दीप्ति

vijay3@comcast.net via yahoogroups.com ने कहा…

vijay3@comcast.net via yahoogroups.com

हृदय से बहुत बहुत बधाई इस सुगढ़ और सान्द्र लेखन के लिए।

सादर।

विजय

santosh kumar ने कहा…

ksantosh_45@yahoo.co.in via yahoogroups.com

माँ थी पुष्पा चमन, माँ थी आशा-किरण
माँ की सुषमा थी राजीव सी आमरण
माँ के माथे पे बिंदी रही सूर्य सी-
माँ ही जीवन में जीवन का है अवतरण
*
अति सुन्दर आ० सलिल जी। बेहतरीन शब्दों से सुसज्जित कविता । बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह

Madhu Gupta via yahoogroups.com ने कहा…

Madhu Gupta via yahoogroups.com

संजीव जी
आपकी लेखनी को नमन

लिपि पिता, पृष्ठ तुम, है समीक्षा बहन
थिर कथानक अनुज, कथ्य तुमको नमन
रुक! सखा चिन्ह कहते- 'न संजीव थक'
स्नेह माँ की विरासत हुलस कर ग्रहण
शब्द नही सरहाना के लिए
मधु

sanjiv ने कहा…

दीप्ति जी, कुसुम जी, संतोष जी, विजय जी,

आप सभी की ओर से माँ को गीति-प्रणाम
किया शब्द से निहित हैं इसमें भाव अनाम
बनकर आज निमित्त हूँ हुआ सत्य ही धन्य
मन तो माँ होती सदा सबसे अलग अनन्य

sanjiv ने कहा…

संतोष जी
ध्यान शब्द पर कम भाव पर अधिक केन्द्रित था।

Shriprakash Shukla ने कहा…

Shriprakash Shukla viayahoogroups.com

अद्भुत रचना आचार्य जी ,

सादर

श्रीप्रकाश शुक्ल

Pranava Bharti ने कहा…

Pranava Bharti via yahoogroups.com

आचार्य जी !
क्या कहूं शब्द साथ नहीं देते हैं ,
आप सदा संवेदनाओं के साथ बहते हैं ।
माँ की स्मृति में,सम्मान में ,शान में ,
हमारे नमन आपके साथ रहते हैं ॥

आपको अनेकानेक अभिनन्दन
सादर
प्रणव

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com


सुन्दर, समर्थ, सहज भाव उजियारे
लगे प्रीतिकर, न्यारे और प्यारे

सादर,
दीप्ति

Mahipal Tomar ने कहा…

Mahipal Tomar via yahoogroups.com

' स्मृति -गीत ' जिस गहराई और विस्तार को समाहित कर आगे बढ़ा है ,वह आपके कवित्व कौशल का ही चमत्कार है , हार्दिक बधाई ,' सलिल ' जी

sanjiv ने कहा…

आपका आशीष है पाथेय स्वीकारें नमन.
स्नेह-सुरभित सृजन का महके सदा यह अंजुमन

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

Ram Gautam ने कहा…

Ram Gautam

आ. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी,

आपका प्रेषित, माँ के प्रति " स्मृति- गीत" बहुत ही हृदय को छूने वाला, प्यार
और माँ से मिले उपहारों का मर्म-स्पर्शी चित्रण सुंदर चमत्कारी लगा | आपको
एवं आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें | सदा ही आपके शब्द ओज- पूर्ण
की अभिव्यक्ति के साथ पढ़ने को मिलते हैं और साथ में कुछ नया भी | आपको
बधाई स्वीकार हो |
सादर- गौतम

sanjiv ने कहा…

मैया की है कृपा चाहतीं जब जो वे लिखवा लेतीं
आप सरीखे गुणीजनों से शुभाशीष दिलवा देतीं
हूँ कृतज्ञ आभार आपका रचना का रस पान किया
सार्थक है कवि-कर्म मातृ-छवि का रचना में दर्श किया