नवगीत:
संजीव.
अधर पर धर अधर १०
छिप २
नवगीत का मुखड़ा कहा १४
.
चाह मन में जगी १०
अब कुछ अंतरे भी गाइये १६
पंचतत्वों ने बनाकर १४
देह की लघु अंजुरी १२
पंच अमृत भर दिये १२
कर पान हँस-मुस्काइये १४
हाथ में पा हाथ १०
मन २
लय गुनगुनाता खुश हुआ १४
अधर पर धर अधर १०
छिप २
नवगीत का मुखड़ा कहा १४
.
सादगी पर मर मिटा १२
अनुरोध जब उसने किया १४
एक संग्रह अब मुझे १२
नवगीत का ही चाहिए १४
मिटाकर खुद को मिला क्या? १४
कौन कह सकता यहाँ? १२
आत्म से मिल आत्म १०
हो २
परमात्म मरकर जी गया १४
अधर पर धर अधर १०
छिप २
नवगीत का मुखड़ा कहा १४
…
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें