दोहा सलिला
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[भ्रमर दोहा- २६ वर्ण, ४ लघु, २२ गुरु]
मात्राएँ हों दीर्घ ही, दोहा में बाईस
भौंरे की गुंजार से, हो भौंरी को टीस
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फैलुं फैलुं फायलुं, फैलुं फैलुं फाय
चोखा दोहा भ्रामरी, गुं-गुं-गुं गुंजाय
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श्वासें श्वासों में समा, दो हो पूरा काज,
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज?
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जीते-हारे क्यों कहो?, पूछें कृष्णा नैन
पाँचों बैठे मौन हो, क्या बोलें बेचैन?
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तोलो-बोलो ही सही, सीधी सच्ची रीत
पाया-खोने से नहीं, होते हीरो भीत
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नेता देता है सदा, वादों की सौगात
भूले से माने नहीं, जो बोली थी बात
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शीशा देखे सुंदरी, रीझे-खीझे मुग्ध
सैंया हेरे दूर से, अंगारे सा दग्ध
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बोले कैसे बींदड़ी, पाती पाई आज
सिंदूरी हो गाल ने, खोला सारा राज
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चच्चा को गच्चा दिया, बच्चा ऐंठा खूब
सच्ची लुच्चा हो गया, बप्पा बैठा डूब
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बुन्देली आल्हा सुनो, फागें भी विख्यात
राई का सानी नहीं, गाओ जी सें तात
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१४-२-२०१७
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