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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

भवानी प्रसाद तिवारी

पुण्य स्मरण 
भवानी प्रसाद तिवारी 
(१२-२-१९१२, सागर - १३-१२-१९७७ जबलपुर) 
*
जबलपुर के जननायक भवानी प्रसाद तिवारी  वर्ष १९३० में  राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़कर मात्र १८  वर्ष की उम्र में पहली बार और इसके बाद कई बार राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संघर्ष करते हुए ब्रिटिश प्रशासन द्वारा कैद किए गए। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत शहर की तिलक भूमि तलैया में हुए सिग्नल कोर के विद्रोह की अगुवाई करने के साथ ही शहर में होने वाले हर आंदोलन की अगुवाई की। त्रिपुरी अधिवेशन में सहभागिता के लिए उन्होंने हितकारिणी स्कूल में शिक्षक की नौकरी छोड़  दी। और तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में शामिल रहे। वर्ष १९४७ में तिवारी जी ने 'प्रहरी' समाचार पत्र का संपादन दक्षतापूर्वक किया । 
वे वर्ष १९३६ से लेकर १९४७ तक लगातार नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा १९६४ से दो बार राज्यसभा सांसद रहे। जबलपुर नगर पालिका (अब नगर निगम) में अधिकतम सात बार महापौर होने का गौरव भवानी प्रसाद तिवारीजी के ही नाम है। वे १९५२, १९५३, १९५५, १९५६, १९५७, १९५८ और १९६१ में महापौर चुने गए।राजनीतिक सक्रियता के समांतर श्रेष्ठ साहित्यकार के रूप में भी पंडित आपकी ख्याति अक्षुण्ण है। 
छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा पर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को आपने वरीयता दी। वर्ष १९४२ में विख्यात नेता हरिविष्णु कामथ  की प्रेरणा से किए गए रवींद्रनाथ टैगोर की अमर कृति गीतांजलि के सारगर्भित मधुर काव्यानुवाद ने उन्हें विशेष ख्याति दिलाई। गीतांजलि के अंग्रेजी काव्यानुवाद से प्रेरित तिवारी जी द्वारा किये गए अनुगायन में मूल गीतांजलि के अनुरूप अनुक्रम भावगत समानता है। इसे गुरुदेव ने इसे गीतांजलि का अनुवाद मात्र न मानकर सर्वथा मौलिक कृति निरूपित करते हुए तिवारी जी को आशीषित किया।
असाधारण सामाजिक-साहित्यिक अवदान हेतु वर्ष १९७२ में भारत सरकार ने आपको 'पद्मश्री' से अलंकृत किया। १३ दिसंबर १९७७ को आपका महाप्रस्थान हुआ, जबलपुर ही नहीं देश ने भी एक महान और समर्पित नेता खो दिया।
आपके पुत्र सतीश तिवारी (अब स्वर्गीय), सुपुत्री डॉ. आभा दुबे तथा पुत्रवधु डॉ. अनामिका तिवारी ने भी अपनी असाधारण योग्यता से साहित्यिक सांस्कृतिक क्षेत्र में अपने पहचान बनाई है। अनामिका जी देश की अग्रगण्य पादप विज्ञानी भी हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनामिका जी द्वारा भवानीप्रसाद तिवारी जी की स्मृति में स्थापित प्रथम साहित्य श्री सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत है तिवारी जी की एक रचना आभा जी के सौजन्य से -  

आम पर मंजरी













भवानी प्रसाद तिवारी
*
घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समाँ बन्ध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियां हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगन्ध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय -वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ........ 

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