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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

मुक्तिका

'शाम हँसी पुरवाई में' 
विमोचन पर मुक्तिका
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
शाम हँसी पुरवाई में। 
ऋतु 'बसंत' मनभाई में।।

झूम उठा 'विश्वास' 'सलीम'।
'विकल' 'नयन' अरुणाई में।।

'दर्शन' कर 'संतोष' 'अमित'।  
'सलिल' 'राज' तरुणाई में।।

छंद-छंद 'अमरेंद्र' सरस्। 
'प्यासा' तृषा बुझाई में।।  

महक 'मंजरी' 'संध्या' संग। 
रस 'मीना' प्रभु भाई में।।

मति 'मिथलेश' 'विनीता' हो। 
गीत-ग़ज़ल मुस्काई में।।

डगर-डगर 'मक़बूल' ग़ज़ल। 
अदब 'अदीब' सुहाई में।

'जयप्रकाश' की कहे कलम। 
'किसलय' की पहुनाई में।।

'प्रतुल' प्रवीण' 'तमन्ना' है। 
'हरिहर' सुधि सरसाई में।।     

'पुरुषोत्तम' 'कुलदीप' 'मनोज'।
हो 'दुर्गेश' बधाई में।। 
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