'शाम हँसी पुरवाई में'
विमोचन पर मुक्तिका
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'*
शाम हँसी पुरवाई में।
ऋतु 'बसंत' मनभाई में।।
झूम उठा 'विश्वास' 'सलीम'।
'विकल' 'नयन' अरुणाई में।।
'दर्शन' कर 'संतोष' 'अमित'।
'सलिल' 'राज' तरुणाई में।।
छंद-छंद 'अमरेंद्र' सरस्।
'प्यासा' तृषा बुझाई में।।
महक 'मंजरी' 'संध्या' संग।
रस 'मीना' प्रभु भाई में।।
मति 'मिथलेश' 'विनीता' हो।
गीत-ग़ज़ल मुस्काई में।।
डगर-डगर 'मक़बूल' ग़ज़ल।
अदब 'अदीब' सुहाई में।
'जयप्रकाश' की कहे कलम।
'किसलय' की पहुनाई में।।
'प्रतुल' प्रवीण' 'तमन्ना' है।
'हरिहर' सुधि सरसाई में।।
'पुरुषोत्तम' 'कुलदीप' 'मनोज'।
हो 'दुर्गेश' बधाई में।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें