मुक्तिका
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कुछ सपने हैं, कुछ सवाल भी
सादा लेकिन बाकमाल भी
सावन - फागुन, ईद - दिवाली
मिलकर हो जाते निहाल जी
मौन निहारा जब जब तुमको
चेहरा क्यों होता गुलाल जी
हो रजनीश गजब ढाते हो
हाथों में लेकर मशाल जी
ब्रह्मानंद अगर पाना है
सलिल संग कर लो धमाल जी
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संजीव
२२-२-२०२०
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