मुक्तिका
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आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
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याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
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नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
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कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
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हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
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देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतर में अंतरा बसाया है
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दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरि की न दिल दुखाया है
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