कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

समीक्षा राजलक्ष्मी शिवहरे

समीक्षा 
चिम्पी जी की दुल्हनियाँ : बालोपयोगी कहानियाँ - 
प्रो (डॉ.) साधना वर्मा
*
भारत में बाल कथा हर घर में कही-सुनी जाती है। पंचतत्र और हितोपदेश की लोकोपयोगी विरासत को आगे बढ़ाती है डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे की कृति ''चिम्पी जी की दुल्हनियाँ''। आठ बाल कहानियों का यह संग्रह रोचक विषय चयन, बाल रुचि के पक्षी-पक्षी पात्रों, सरल-सहज भाषा व सोद्देश्यता के कारण पठनीय बना पड़ा है। 'चिंपी जी की दुल्हनिया' में सहयोग भावना, 'अक्ल बड़ी या भैंस' में शिक्षा का महत्व, 'बाज चाचा' में सच्चे व् कपटी मित्र, 'चिंपी जी की तीर्थ यात्रा', 'सुनहरी मछली' व 'चिंटू चूहा और जेना जिराफ' में परोपकार से आनंद, 'लालू लोमड़ की बारात' में दहेज़ की बुराई तथा 'चिंपी बंदर की समझ' में बुद्धि और सहयोग भाव केंद्र में है।
राजलक्ष्मी जी बाल पाठकों के मानस पटल पर जो लिखना चाहती हैं उसे शुष्क उपदेश की तरह नहीं रोचक कहानी के माध्यम से प्रस्तुत करने में सफल हुई हैं। कहानियों की विषय वस्तु व्यावहारिक जीवन से जुडी हैं। थोथा आदर्शवाद इनमें न होना ही इन्हें उपयोगी बनाता है। बच्चे इन्हें पढ़ते, सुनते, सुनाते हुए अनजाने में ही वह ग्रहण कर लें जो उनके विकास के लिए आवश्यक है। इस उद्देश्य को पूर्ण करने में ये कहानियाँ पूरी तरह सफल हैं। बाल शिक्षा से जुडी रही छाया त्रिवेदी के अनुसार "बच्चों समाये निराधार भय को हटाने में हुए उनमें आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक हैं ये कहानियाँ। बाल नाटककार अर्चना मलैया ने इन कहानियों को "बच्चों को पुरुषार्थ पथ पर प्रेरित करने में सहायक" पाया है। कवयित्री प्रभा पाण्डे 'पुरनम' की दृष्टि में इनका "अपना सौंदर्य है, इनमें बालकों को संस्कारित करने की आभा है।"
मैंने इन कहानियों को बच्चों ही नहीं बड़ों के लिए भी आवश्यक और उपयोगी पाया है। हमारे सामान्य सामाजिक जीवन में विघटित होते परिवार, टूटते रिश्ते, चटकते मन, बढ़ती दूरियाँ और दिन-ब-दिन अधिकाधिक अकेला होता जाता आदमी इन कहानियों को पढ़कर स्वस्थ्य जीवन दृष्टि पाकर संतुष्टि की राह पर कदम बढ़ा सकता है। सामान्यत: बाल मन छल - कपट से दूर होता है किंतु आजकल हो रहे बाल अपराध समाज के लिए चिंता और खतरे की घंटी हैं। बालकों में सरलता के स्थान पर बढ़ रही कुटिलतापूर्ण अपराधवृत्ति को रोककर उन्हें आयु से अधिक जानने किन्तु न समझने की अंधी राह से बचाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है ऐसा बाल साहित्य। बाल शिक्षा से जुडी रही राजलक्ष्मी जी को बाल मनोविज्ञान की जानकारी है। किसी भी कहानी में अवैज्ञानिक किस्सागोई न होना सराहनीय है। पुस्तक का आकर्षक आवरण पृष्ठ, सुंदर छपाई इसे प्रभावशाली बनाती है।

कोई टिप्पणी नहीं: