मुक्तक
कान्ति शुक्ला
*
गौरव पुनीत अविरल प्रवाह ।
निर्मित करती निज श्रेष्ठ राह ।
रेवा के विमल धवल जल में-
नूतन रस-सागर है अथाह.।
नीरव निसर्ग की मुखर प्राण ।
गुंजित कल-छल के मधुर गान ।
ऐश्वर्यमयी महिमा शालिनी-
चिर नवल नर्मदा लो प्रणाम ।
भक्ति हो भावुक जनों की ।
शक्ति हो साधक जनों की ।
विपुल वैभव से अलंकृत-
शांति सुख भौतिक जनों की ।
यह जयंती हो चिरंतन ।
स्वप्न रच लें नित्य नूतन ।
भूखंड की श्रृंगार तुम-
हो अलौकिक और पावन ।
*
गीत
कान्ति शुक्ला
*
शिवधाम अमरकंटक से आकर निर्बाधित बहना ।
नर्मदे तुम्हीं से सीखा भूतल पर जन ने रहना ।
तुम कोमल सी कल-कल में अपना इतिहास सुनातीं.।
कूलों की रोमावलियाँ सुन कर पुलकित हो जातीं ।
प्राणों की हर धड़कन में लहरों का गीत मचलना ।
नर्मदे तुम्हें देते हैं शीतल छाया निज तरुवर.।
आलिंगन नित करते हैं तव कंठहार बन गिरिवर ।
तुमने हर पल चाहा है मानव को पावन करना ।
चिर ऋणी देश है रेवा गरिमा से पूरित तुमसे ।
ऋषि-मुनियों सच्चे संतों की महिमा मंडित तुमसे।
उल्लसित धरणि है कहती, तुमसे सुख वैभव मिलना ।
पथ के पाहन छूने से पावन हो पूजे जाते।
जिस स्थल पर चरण पड़ें तव, वे घाट अमर हो जाते।
मोहक श्रद्धालु जनों का, है दीप समर्पित करना ।
कान्ति शुक्ला
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 21 फ़रवरी 2021
गीत कांति शुक्ला
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