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शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

मुक्तक मंज़िल

मुक्तक

हम मतवाले पग पगडंडी पर रख झूमे।

बाधाओं को जय कर लें मंज़िल पग चूमे।।

कंकर को शंकर कर दें हम रखें हौसला-

मेहनत कोशिश लगन साथ ले सब जग घूमे।।

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मंज़िल की मत फ़िक्र करो हँस कदम बढ़ाओ।

राधा खुद आए यदि तुम कान्हा बन जाओ।।

शिव न उमा के पीछे जाते रहें कर्मरत-

धनुष तोड़ने काबिल हो तो सिय को पाओ।।

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यायावर राही का राहों से याराना।

बिना रुके आगे, फिर आगे, आगे जाना।।

नई चुनौती नित स्वीकार उसे जय करना-

मंज़िल पर पग धर झट से नव मंज़िल वरना।।

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काव्य मंजरी छंद राज की जय जय गाए।

काव्य कामिनी अलंकार पर जान लुटाए।।

रस सलिला में नित्य नहा, आनंद पा-लुटा-

मंज़िल लय में विलय हो सके श्वास सिहाए।।

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मंज़िल से याराना अपना।

हर पल नया तराना अपना।।

आप बनाते अपना नपना।

पूरा करें देख हर सपना।।

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