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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

गीत

गीत
आज के इस दौर में भी
संजीव
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आज के इस दौर में भी समर्पण अध्याय हम
साधना संजीव होती किस तरह पर्याय हम
मन सतत बहता रहा है नर्मदा के घाट पर
तन तुम्हें तहता रहा है श्वास की हर बाट पर
जब भरी निश्वास; साहस शांति आशा ने दिया
सदा करता राज बहादुर; हुए सदुपाय हम
आपदा पहली नहीं कोविद; अनेकों झेलकर
लिखी मन्वन्तर कथाएँ अगिन लड़-भिड़ मेलकर
साक्ष्य तुहिना-कण कहें हर कली झरकर फिर खिले
हौसला धरकर; मुसीबत हर मिटाने धाय हम
ओम पुष्पा व्योम में, हनुमान सूरज की किरण
वरण कर को विद यहाँ? खोजें करें भारत भ्रमण
सूर सुषमा कृष्ण मोहन की सके बिन नयन लख
खिल गया राजीव पूनम में विनत मुस्काय हम
महामारी पूजते हम तुम्हें; माता शीतला
मिटा निर्बल मंदमति, मेटो मलिनता बन बला
श्लोक दुर्गा शती, चौपाई लिए मानस मुदित
काय को रोना?, न कोरोना हुए निरुपाय हम
गीत गूँजेंगे मिलन के, सृजन के निश-दिन सुनो
जहाँ थे हम बहुत आगे बढ़ेंगे, तुम सिर धुनो
बुनो सपने मीत मिल, अरि शीघ्र माटी में मिलो
सात पग धर, सात जन्मों संग पा हर्षाय हम
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२९-४-२०२०

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