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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

चित्र पर रचना

एक अभिनव अनुष्ठान: चित्र पर रचना














प्रसंग है एक नवयुवती छज्जे पर क्रोधित मुख मुद्रा में है जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है। विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते? बानगी देखिए और आप भी अपने प्रिय कवि की शैली में लिखिए।
*
मैथिलीशरण गुप्त
अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नहीं दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।
*
रामधारी सिंह दिनकर
दग्ध ह्रदय में धधक रही,
उत्तप्त प्रेम की ज्वाला,
हिमगिरी के उत्स निचोड़,
फोड़ पाताल, बनो विकराला,
ले ध्वंसों के निर्माण त्राण से,
गोद भरो पृथ्वी की,
छत पर से मत गिरो,
गिरो अम्बर से वज्र सरीखी.
*
श्याम नारायण पांडे
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।
*
गोपाल दास नीरज
रूपसी उदास न हो, आज मुस्कुराती जा
मौत में भी जिन्दगी, के फूल कुछ खिलाती जा
जाना तो हर एक को, यद्यपि जहान से यहाँ
जाते जाते मेरा मगर, गीत गुनगुनाती जा..
*
गोपाल प्रसाद व्यास
छत पर उदास क्युं बैठी है
तू मेरे पास चली आ री!
जीवन का सुख दुख कट जाए,
कुछ मैं गाऊं,कुछ तू गा री। तू
जहां कहीं भी जाएगी
जीवन भर कष्ट उठायेगी ।
यारों के साथ रहेगी तो
मथुरा के पेड़े खाएगी।
*
सुमित्रानन्दन पंत
स्वर्ण सौध के रजत शिखर पर
चिर नूतन चिर सुन्दर प्रतिपल
उन्मन उन्मन अपलक नीरव
शशि मुख पर कोमल कुन्तल पट
कसमस कसमस चिर यौवन घट
पल पल प्रतिपल
छल छल करती ,निर्मल दृग जल
ज्यों निर्झर के दो नीलकमल
यह रूप चपल, ज्यों धूप धवल
अतिमौन, कौन?
रूपसि बोलो,प्रिय, बोलो न?
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काका हाथरसी
गोरी छज्जे पर चढ़ी, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करें करतार
भली करें करतार, सभी जन हक्का बक्का
उत चिल्लाये सास, कैच ले लीजो कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ियो
उधर कूदियो नार, मुझे बख्शे ही रहियो।
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उपरोक्त सभी कविताओं के रचनाकार ओम प्रकाश 'आदित्य' जी हैं। इस प्रसंग पर वर्तमान कवि भी अपनी बात कहें तो आनंद में वृद्धि होगी।
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
गोरी छज्जे पर चढ़ी, एक पाँव इस पार.
परिवारीजन काँपते, करते सब मनुहार.
करते सब मनुहार, बख्श दे हमको देवी.
छज्जे से मत कूद. मालकिन हम हैं सेवी.
तेरा ही है राज, फँसा मत हमको छोरी.
धाराएँ बहु एक, लगा मत हम पर गोरी..
छोड़ूंगी कतई नहीं, पहुँचाऊँगी जेल.
सात साल कुनबा सड़े, कानूनी यह खेल.
कानूनी यह खेल, पटकनी मैं ही दूँगी.
रहूँ सदा स्वच्छंद, माल सारा ले लूँगी.
लेकर प्रेमी साथ, प्रेम-रुख मैं मोड़ूँगी.
होगी अपनी मौज, तुम्हें क्योंकर छोडूँगी..
लड़की करती मौज है, लड़के का हो खून.
एक आँख से देखता, एक-पक्ष क़ानून.
एक-पक्ष क़ानून, मुक़दमे फर्जी होते.
पुलिस कचहरी मस्त, नित्य प्रति लड़के रोते.
लुट जाता घर बार, हाथ आती बस कड़की.
करना नहीं विवाह, देखना मत अब लड़की..
*
बुआश्री महीयसी महादेवी वर्मा से क्षमा प्रार्थना सहित
क्यों कूदूँ मैं छत से रे?
तुझ में दम है तो आ घर में बात डैड से कर ले रे!
चरण धूल अम्मा की लेकर माँग आप ही भर ले रे!
पदरज पाकर तर जायेगा जग जाएगा भाग रे!
देर न कर मेरे दिल में है लगी विरह की आग रे!
बात न मानी अगर समझ तू अवसर जाए चूक रे!
किसी और के दिल को देगी छेद नज़र बंदूक रे!
कई और भी लाइन में हैं सिर्फ न तुझसे प्यार रे!
प्रिय-प्रिय जपते तुझसे ढेरों करते हैं मनुहार रे!
*
टीप: महीयसी की मूल रचना:
क्या पूजा क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे!
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनन्दन रे!
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन में जलकण रे!
अक्षत पुलकित रोम, मधुर मेरी पीड़ा का चन्दन रे!
स्नेहभरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक-मन रे!
मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे!
धूप बने उड़ते जाते हैं प्रतिपल मेरे स्पंदन रे
प्रिय-प्रिय जपते अधर, ताल देता पलकों का नर्तन रे!
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल':
स्थिति १ :
सबको धोखा दे रही, नहीं कूदती नार
वह प्रेमी को रोकती, छत पर मत चढ़ यार
दरवाज़े पर रुक ज़रा, आ देती हूँ खोल
पति दौरे पर, रात भर, पढ़ लेना भूगोल
स्थिति २
खाली हाथों आये हो खड़े रहो हसबैंड
द्वार नहीं मैं खोलती बजा तुम्हारा बैंड
शीघ्र डिनर ले आओ तो दोनों लें आनंद
वरना बाहर ही सहो खलिश, लिखो कुछ छंद
स्थिति ३:
लेडी गब्बर चढ़ गयी छत पर करती शोर
मम्मी-डैडी मान लो बात करो मत बोर
बॉय फ्रेंड से ब्याह दो वरना जाऊँ भाग
छिपा रखा है रूम में भरवा लूँगी माँग
भरवा लूँगी माँग टापते रह जाओगे
होगा जग-उपहास कहो तो क्या पाओगे?
कहे 'सलिल' कवि मम्मी-डैडी बेबस रेड़ी
मनमानी करती है घर-घर गब्बर लेडी
*
श्याम कुँवर भारती
आओ देवी कूदा छत से लेला अवतार  हो
आवा देवी कूदा झट से रोके ना यार हो
झाँक मुँडेरे देखा धमकावा नाहीं रे
हिम्मत कर कूद पड़ेला थम जावा नाहीं रे 
*
अनिल बाजपेई 
धमकाना जीवन का सार
धमकी प्राणों का आधार 
धमकी बिन जीवन मरुभूमि
धमकी ईश्वर का उपहार 
*
श्रीधर प्रसाद
देवी दिखावें अब वीरता को, कूदकर करें संकट दूर मेरा।
हाथ-पैर टूट जाए अकल आए, मानिए न बात दर्द हो घनेरा
*
कबीर 
कूद तहाँ मत जाइए, जहँ कूंजर की हाट।
रस्सी गाँठी बाँधि लै, कूद ठठा हो ठाठ ।।
*
मुकुल तिवारी
ऐ डॉक्टर कम्पाउंडर नर्सों , मेरा कारज सिद्ध करो।
क्वारेंटाइन नहीं सुहाता, कूदूँ या तुम मुक्त करो।
*
मिथलेश बड़गैया
मत सोचो क्यों कूद रहीं, झट कूद समझ जग लूट लिया।
साथ छोड़ती साँसों ने, अलविदा कहा जग लूट लिया।।
ब्लैकमेल कर कितने लूटे, कितनों को भिजवाया जेल
पोल खुल गई खुद की तो, धमकी दे झट कह लूट लिया।।
*
बसंत शर्मा
नहीं कोई रोके कहाँ जाऊँ मैया
न कोई बचैया कहाँ जाऊँ मैया
हवा विषभरी जो है तुमने करी है
धमकाया जिसने वही अब डरी है
तुम्हें नीड़ पिंजरा, वफा है अनजानी 
न रोके चिरैया कहाँ जाऊँ मैया
*
निरुपमा वर्मा
पारब्रह्म की अद्भुत रचना, मैं कोरोना हाहाकार।
जितनी जल्दी मैं करता हूँ, कोई कर न सके उद्धार।।
छत पर चढ़कर कूद बचोगी, मत सोचो टूटेंगे पैर।
बाँह बढ़ाए खड़ा गली में, नहीं रहेगी तेरी खैर।।
दवा ओषजन कमरों लाशों, का करवाता हूँ व्यापार। 
छोड़ देवता मुझको पूजो, वंदन कर लो बारंबार 
*
पुष्पा अवस्थी
मकां छत की बाउंड्री हुई अरुणित
रूपसी छत पर चढ़ी, हुई क्रोधित 
चंडिका सी धरे सिर पर आसमान 
कालिका सी डराती हो रही युद्धरत
*
(महादेवी जी तथा बाद की रचनाएँ द्वारा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' )
२९-४-२०२१ 

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