संजीव 'सलिल'
*
नव संवत्सर मंगलमय हो.
हर दिन सूरज नया उदय हो.
सदा आप पर ईश सदय हों-
जग-जीवन में 'सलिल' विजय हो.
*
पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.
जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..
सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.
'सलिल' कभी मत किसी के, प्रति हो मन में बैर.
*
मन मंदिर में जो बसा, उसको भी पहचान.
जग कहता भगवान पर वह भी है इंसान..
जो खुद सब में देखता है ईश्वर का अंश-
दाना है वह ही 'सलिल' शेष सभी नादान..
*'
संबंधों के अनुबंधों में ही जीवन का सार है.
राधा से,मीरां से पूछो, सार भाव-व्यापार है..
साया छोडे साथ,गिला क्यों?,उसका यही स्वभाव है.
मानव वह जो हर रिश्ते से करता'सलिल'निभाव है.
*
दिल चुराकर आप दिलवर बन गए.
मन मंदिर में जो बसा, उसको भी पहचान.
जग कहता भगवान पर वह भी है इंसान..
जो खुद सब में देखता है ईश्वर का अंश-
दाना है वह ही 'सलिल' शेष सभी नादान..
*'
संबंधों के अनुबंधों में ही जीवन का सार है.
राधा से,मीरां से पूछो, सार भाव-व्यापार है..
साया छोडे साथ,गिला क्यों?,उसका यही स्वभाव है.
मानव वह जो हर रिश्ते से करता'सलिल'निभाव है.
*
दिल चुराकर आप दिलवर बन गए.
दिल गँवाकर हम दीवाने हो गए.
दिल कुचलनेवाले दिल की क्यों सुनें?
थामकर दिल वे सयाने बन गए..
*
२२-४-२०१०
***
२२-४-२०१०
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें