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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर लघुकथा गोष्ठी २३-४-२०२१

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर - दिल्ली ईकाई 
लघुकथा गोष्ठी २३-४-२०२१

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर की दिल्ली ईकाई द्वारा २३-४-२०२१ को नरेंद्र कोहली जी की स्मृति में लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी का सरस संचालन करते हुए श्री सदानंद कवीश्वर ने स्व. नरेंद्र कोहली जी संबंधी आत्मीय संस्मरण सुनाए। सरस्वती वंदना के पश्चात् सर्व आदरणीय चंदा देवी स्वर्णकार जबलपुर, विभा तिवारी जौनपुर, शेख शहजाद उस्मानी शिवपुरी, गीता चौबे गूँज राँची, पूनम झा कोटा, भारती नरेश पाराशर जबलपुर, गीता शुक्ला फरीदाबाद, अनिता रश्मि राँची, रेणु गुप्ता जयपुर, मनोज कर्ण फरीदाबाद, रमेश सेठी रोपड़, शिवानी खन्ना दिल्ली, नीलम पारीक बीकानेर, सुरेंद्र कुमार अरोड़ा साहिबाबाद, शशि शर्मा इंदौर, सदानंद कवीश्वर दिल्ली, अंजू खरबंदा दिल्ली तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर ने लघुकथा पाठ कर गोष्ठी को समृद्ध किया।
गोष्ठी में प्रस्तुत लघुकथाओं पर अध्यक्ष आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संचालक सदानंद कवीश्वर तथा विश्ववाणी हिंदी संस्थान दिल्ली ईकाई संयोजक अंजू खरबंदा ने यथोचित टिप्पणियाँ कर लघुकथाकारों को परामर्श दिया।


मुख्य अतिथि मनोज कर्ण जी ने विश्व साहित्य फलक पर हो रहे परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए लघुकथाकारों से पुनरावृत्ति से बचने का परामर्श दिया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने अभिनव प्रयोग करते हुए सभी सहभागियों के नामों को गूँथते हुए सद्य रचित लघुकथा सुनते हुए पुस्तक संस्कृति का महत्व प्रतिपादित किया। भारत में लघुकथा का उद्भव वन्य आदिवासियों की लोककथाओं से मानते हुए वक्ता ने लघुकथा के विकास, प्रकार, आधुनिक रूप, तत्व तथा वैशिष्ट्य आदि पर प्रकाश डाला। स्व. नरेंद्र कोहली से संबंधित संस्मरण सुनाने के पश्चात् सलिल जी ने वर्तमान लघुकथा की सशक्त हस्ताक्षर कांता रॉय तथा उनके पति श्री सत्यजीत रॉय के कोरोनाजयी होने का समाचार देते हुए उनके स्वास्थ्य लाभ, दीर्घायुष्य तथा सुदीर्घ योगदान की कामना की। आभार प्रदर्शन श्रीमती अंजू खरबंदा ने किया।

प्रस्तुत लघुकथाएँ :

१. किट्टी पार्टी - गीता चौबे 'गूँज' रांची, ८८८०९ ६५००६
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'' क्या बढ़िया कचौरियां बनायी थी मिसेज शर्मा ने कल की किट्टी पार्टी में.. ! '' रोमा बड़ी चहकते हुए प्रिया को बता रही थी।
'' हां.. कितना अच्छा लगता है न.. हम सभी इक्ट्ठा हो एक - दूसरे का हाल लेती हैं, गप्पें लड़ाती हैं.. टाइम कितना अच्छे से बीत जाता है और एकरसता भी दूर हो जाती है हमारी... है न? '' सीमा ने भी उत्साह बढ़ाते हुए कहा।
तभी मिसेज दास ने दोनों की बातें सुन के बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा,.. '' क्या खाक अच्छी बनी थीं, मोयन तो डाला ही नहीं था.. मुझे तो एकदम बेस्वाद लगीं। ''
'' क्या मिसेज दास, आप तो हर चीज़ में कमी निकलती हैं, '' पीछे से आती हुई पिंकी तपाक से बोल पड़ी।
'' और नहीं तो क्या! पिछली किट्टी मेरे घर पर थी तब मैंने कितने पकवान बनाए थे.. याद है कि भूल गयी? ''
'' छोड़िए न मिसेज दास.. आप भी क्या बातें लेकर बैठ गयीं, '' रोमा ने फौरन बात संभाल ली। उसे डर था कि पिछली बार की तरह कहीं फिर से वाकयुद्ध न शुरू हो जाए जो उस किट्टी पार्टी में कड़वाहट भर गया था। ।
रोमा सोचने लगी कि किट्टी पार्टी गृहिणियों के लिए कितनी उपयोगी है। दिनभर की थकान और एकरसता को दूर करने के लिए एक स्वस्थ किट्टी पार्टी किसी शक्तिवर्धक पेय की तरह होती है ; पर मिसेज दास जैसी औरतों का क्या किया जाय जो एक उपयोगी किट्टी पार्टी का मज़ा किरकिरा कर देती हैं।
हर समाज में मिसेज दास जैसी महिला होती ही हैं। उनकी उपेक्षा तो नहीं की जा सकती है, पर समझदारी से उनके साथ निभाने में ही भलाई है।
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२. बीइंग पॉज़िटिव -शेख़ शहज़ाद उस्मानी, शिवपुरी ९४०६५ ८९५८९
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(सबेरे-सबेरे वीडियो बातचीत घर में शारीरिक दूरी सहित)-
"क्यों बेगम आज चाय भी नहीं मिलेगी क्या?... या मैं ख़ुद बना लूँ!"
"तुम्हारी पॉज़िटिव-निगेटिव रिपोर्टों ने तो मेरी जान खा ली। रसोई में हरग़िज़ मत जाना। थोड़ा सब्र करो!"
"करता ही तो हूँ ।"
"अब ये क्या चबा रहे हो?"
"तुलसी पत्तियाँ! पानी तुम तो सींचती नहीं, सो मैं ही तुलसी को पानी भी दे देता हूँ।"
"या अल्लाह! तुम तुलसी तक भी पहुंच गये! क्यूँ छुआ उसे?"
"मुझे आराम देती है तुलसी!"
"अल्लाह पर भरोसा रखो! ये आराम तो मेरी इबादत, वजीफ़ों-फूँकों और ख़िदमत से मिल रहा है जनाब!"
"उससे तो हमें-तुम्हें रूहानी सुकूँ मिलता है बेगम! दवाइयों-औषधियों से इलाज़ और इम्यूनिटी!"
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३. प्रैक्टिकल -शशि शर्मा इंदौर, ९८२७२ ५३८६८
*
शिखा और उसके पति अपनी दोनों बेटियों के विवाह की जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके थे। नाती पोतों के साथ खुशी-खुशी अपने जीवन की इस पारी का आनंद ले रहे थे।दोनो जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे । सुबह-सुबह सैर पर जाना और फिर मंदिर जाना।शाम को अपनी स्कूटी पर लम्बी ड्राइव पर निकल जाना जैसे उनका रोज़ का नियम था ।विवाह के उपरांत पैतालिस बसंत कैसे निकल गए उन्हें पता ही नही चला । समय यूँ ही पंख लगाए उड़ रहा था । आस-पास के लोग अक्सर उनकी जोड़ी की मिसाल देते थे । एक दिन अचानक शिखा के घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी और रुदन स्वर से साफ पता चल रहा था कि कोई अनहोनी हुई है । शिखा के पति ह्रदयघात से चल बसे । सभी आपस में फुसफुसा रहे थे कि हंसों का जोड़ा टूट गया । बहुत बुरा हुआ ,'लव बर्ड्स 'थे । अब बेचारी शिखा का क्या होगा ।
कुछ दिन बाद सब अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए। लगभग दो महीने बीत चुके थे कि अचानक एक दिन जब शिखा ने सुर्ख लाल जोड़े में , मांग में सिंदूर और हाथों में चूड़ा पहने कॉलोनी में प्रवेश किया।उसके चेहरे की चमक उसकी प्रसन्नता स्वयं ही व्यक्त कर रही थी । शिखा ने चहकते हुए बताया कि अपनी बेटी के विदुर ससुर के साथ उसने विवाह कर लिया है और अब वह बहुत खुश है । शिखा ने सहज भाव से कहा कि जीवन में प्रैक्टिकल होना चाहिए ।
किन्तु मैं विचारों में खो गई कि पैतालिस वर्षो का साथ , सुख दुख के पल , एक दूसरे का साथ , जीवन की अनंत यादें इन सब को क्या दो महीने में 'प्रैक्टिकल ' होने के नाम पर भुलाया जा सकता है। अचानक शिखा के खिलखिलानें से मेरी तंद्रा भंग हुई और मैंने शिखा को बधाई दी ।
***
४. सौ बटा सौ -अन्जू खरबंदा दिल्ली
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रामू बगिया में पिता के साथ पौधे रोपने और गुड़ाई करने में मदद कर रहा था ।
"क्यूं रे रामू, पेपर मिल गये क्या!"
बड़ी मालकिन ने अचानक आकर पूछा तो रामू सकपका गया ।
"जी...जी... मिल गये!"
हकलाते हुए उसने जवाब दिया ।
"कितने नम्बर आए !"
रोबीली आवाज में पूछा गया ।
"३५..."
"सिर्फ ३५... कुछ शर्म हया है कि नहीं! देखता भी है कि सारा दिन तेरा बाप खटता है! क्या जरा भी दया नही तेरे मन में!"
जोरदार डांट पड़ी और अभी जाने कितनी ही देर पड़ती रहती कि अचानक से बापू बीच में आ गये ।
"मालकिन! सारा दिन ये भी तो खटता है मेरे साथ! स्कूल से आते ही कपड़े बदल जल्दी जल्दी खाना खा, मेरे लिये खाना लेकर आता है और फिर मेरे साथ ही काम पर जुट जाता है और फिर घर पहुंच कर देर रात तक पढ़ता भी है ।"
"पढ़ाई के बिना आजकल कुछ नहीं । इसके भले के लिये ही समझाती हूँ!"
बड़ी मालकिन ने समझाने के लहजे में कहा ।
"जो बच्चा अपने पिता के प्रति दयाभाव रखे, उससे बड़ी बात और क्या होगी मालकिन!"
"और नम्बर....!"
"भले ही इसके पढ़ाई में ३५ नम्बर आये... पर मेरी तरफ से तो सौ बटा सौ ही हैं ।"
*
५. बीहनिकथा। (मैथिली लघुकथा)
एहि माटिक रंग - श्री मुन्ना जी
*
-- अन्टी बधाइ हुअए ! पोती भेल ए।मिठाइ मँगाउ ने।
__अस्पताल क सिस्टर आबि विभाक साउस के जनतब देलक।
--यै, जे भेलै से नीके कहू।पहिलोठ चिलका छै।मुदा बुच्ची छ:मस्सू छै, बचतै की नै, से ड'र होइए !
-- नै यै अन्टी,बुच्ची हृष्ट-पुष्ट आ समय पूर क' नवम मास मे जन्म लेलक ऐछ।
-- यै, कहू त' भला छ:मस्सू नै त' सतमस्सू हेतै? बौआक विआहक साते मास त' भेलै ए।
-- से बात भाभीये जी कहती।.....चलू ने वार्ड में भेंट क' लियौन।
" भाभी जी, विआहक सात मास आ चिलका नौ मस्सू ?" कने कहियौन अन्टी के बुझा के।
-- हें...हें..हें।यै मम्मी, इहो त' स्त्रीये ने , हिनका नै बूझल छन्हि जे स्त्री सदति पुरूषक नीच्चे दबल रहै छै।कखनो नजरिक त'र त' कखनो देहक त'र ।
-- ऐं...! माने कतेक पुरूषक किरदानी छी इ चिलका ?
-- धौर ! इहो कोना चौल करै छथिन। हम दुनू गोटे एके ऑफिसक नोकरीहारा । हिनको बेटा त' पुरूषे ने ।
(प्रस्तुतकर्ता मनोज कर्ण ९५४०० ९५३४०)
हिंदी अनुवाद -पूनम झा
'इस मिट्टी का रंग'
"बधाई हो, बधाई हो आंटीजी! पोती हुई है। मिठाई वगैरह मँगाइए "- अस्पताल की नर्स एकदम से भागते हुए आकर विभा की सास से कहा।
"चलो जो हुई, अच्छी है। आखिर पहली संतान है। लेकिन बच्ची छः महीने में ही पैदा हुई है, सो बचेगी या नहीं ? मुझे इसी बात का डर है।"
"अरे नहीं, नहीं आंटी जी! आप चिंता न करें । बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है । पूरे नौ महीने की है ।"
"ऐसे कैसे हो सकता है? भई ! छः नहीं तो सात महीने की होगी । अभी सात महीने ही तो हुए हैं उन दोनों की शादी के।"--विभा की सास ने कहा।
"अब ये बात तो भाभी जी ही बताएंगी। चलिए आप उनसे मिल सकती हैं।"
दोनों डिलेवरी वार्ड में पहुंचते ही नर्स ने - "भाभी जी! आंटी जी को जरा समझा दीजिये कि शादी के सात महीने और बच्ची नौ महीने की कैसे ?"
विभा--"हें..हें..हें..मम्मी जी! आप भी तो स्त्री ही हैं । आप जानती ही हैं कि पुरुषों की नजरों से स्त्री को बचना कितना मुश्किल है ।"
"मतलब!!!.....ये बचिया किसी और ........."
"छि:..छि:...मेरे कहने का ये मतलब नहीं था मम्मी जी। आपको तो मालूम ही है कि मैं और आपका बेटा दो साल से एक ही ऑफिस में काम करते हैं । फिर आपका बेटा भी तो पुरुष ही है।" एक सांस में कह गई विभा।
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६. विकल्प - सुरेंद्र कुमार अरोड़ा, साहिबाबाद ०९९१११ २७२७७  
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महामारी ने फिर से सारे शहर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था । आज शाम को तय हो जाना था कि फेक्ट्री चलती रहेगी या उसे फिर से बंद करना पड़ेगा ।
" अगर फैक्ट्री बंद करने की बात हो गई तो तय था कि मालिक सारे वर्करों को फिर से घर बिठा देगा । और फिर से भूखों मरने की नौबत भी आ जाएगी । पिछली बार तो उसके साथ सावित्री अकेली थी ।किसी तरह फांकों के बीच मरते - खपते दो महीने बीता लिए थे , घर बैठकर और उसके बाद जब गांव के लिए पैदल ही तीन सौ मील का रास्ता तय किया था तो इतने लम्बे रास्ते में न जाने कितनी बार मौत से सामना हुआ था ।
अगर इस बार फिर वही नौबत आ गई तो मौत तय है क्योंकि इस बार सावित्री ही नहीं , नन्हीं सी जान बबली को कैसे संभालेंगे ? बिना काम के , बिना मजदूरी के उसकी भूख प्यास कैसे मिटेगी ?
अभी तो रेल बंद नहीं हुई है तो क्यों न अभी ही मुक्कमल तालाबंदी से पहले ही गांव की टिकट करवा लूं ? वक्त रहते गाँव तो पहुँच जायेंगें। तालाबंदी हो गई तब तो यहां मौत पक्की ही समझो । "
फकीरा ने अपना इरादा सावित्री को बता दिया ।
पति की बात को सुनते ही सावित्री सुन्न हो गई ।
" कछु बोल क्यों नहीं रही ? हम तय किए हैं कि बखत रहते गांव चल पड़त हैं । या दफे पैदल नाहीं चल सकबे । "
सावित्री अब भी चुप थी।
" कछु तो बोल । हम जात हैं टिकट करियावे। " फकीरा झल्लाया।
"का बोली ! का कहत हो । गांव में तुम्हरे बदे होटल खुला बा का , जो उहाँ जैहो । किस्मत भली रही जे फेक्ट्री मालिक तुमका बुलाय लीहिस , बतावा हमका , तुमका उहाँ देख कै कउनो खुस हुआ रहा का ? रोजै तो दाल - चावल के बदे झगड़ा - टंटा ही रहल। ऊ त किस्मत जोर मारिस ज मालिक के बुलावा आ गईल , नहीं त तुम्हरे भइयन संग बंटवारे का चक्कर मां एक - आध खून तय रहल । सुन लेओ , मरी चाहे जी जाइब , हम ई सहर छोड़ क न जाइब। इहें रहब । जोन कुछ होईब , हम अपने आप देख लेब , तोहका चिंता करै की कौनो जरुरत नाहीं है , हम खुदई देख लेब। " सावित्री ने अपना चेहरा क्रोध से लाल कर दिया।
फकीरा को लगा सावित्री ठीक कह रही है। अब उसकी जिंदगी का हर दुःख , हर सुख इसी शहर के साथ है। वो किसी नए काम के बारे में सोचने लगा।
संपर्क : डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन ,साहिबाबाद - 201005 ( ऊ प्र )
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७. मदद - विभा तिवारी जौनपुर ८७०७७ ४०७५६ 
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"अरे तुम सब खड़े खड़े मुँह क्या ताक रहे हो, मोड़ पे जाकर देखो कोई आया कि नही ।" प्रताप यादव गुर्राते हुए बोला
"अभी नही भाई, हम तब से उन्हें ही देख रहे हैं" राम पाल बोला।
प्रताप यादव काशीपुर गाँव का प्रधान था ।आज उसने लॉकडाउन के दौरान गरीबों को खाना देने के लिए इकट्ठा किया हुआ था। उसके कहने पर ही उसके प्रिय और मुँहलगे सेवक, रामपाल(जो हर अच्छे बुरे कर्मो में उसका साथी था) ने सारा प्रबंध कर रखा था। प्रधान जी को अखबार और टीवी पर स्वयं को देखने का बड़ा शौक था। सभी मीडिया के लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे।
सामने मेज पर खाने के छोटे छोटे पैकेट रखे थे ,वही पर प्रताप यादव और उसके चेले घूम रहे थे, एक ओर थोड़ी दूरी पर बहुत से लोग खाना पाने के इंतजार मे ज़मीन पर बैठे थे। उसी भीड़ में एक सात आठ वर्ष का बच्चा भी अपनी माँ के साथ बैठा था, जो खाने की तरफ बड़ी ललक से देखे जा रहा था। बीच बीच मे व्यग्र हो जाता था। उसके बिखरे बाल,फटे कपड़े धँसी हुई आँखे ,अपने सूखे होठों पर बार बार जीभ फेर रहा था,देखने से हीं लग रहा था कि वो बहुत गरीब है और कई दिन से पेट भर खाना नही पाया था। पास हीं उसकी माँ उसका हाथ पकड़े बैठी थी।
इतने में प्रताप यादव को वहाँ से थोड़ा हटना पड़ा तो वह बच्चा खाने वाली मेजके पास किसी को न पाकर लपक कर वहाँ पहुँच गया। जैसे हीं उसने हाथ पैकेट की तरफ बढाया....
"चटाक..." प्रताप यादव का झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। वह बोला, "हरामखोर, ये सब क्या हमने अपने लिए रखा है?? तुम लोगों की मदद के लिए ही रखा है न ? थोड़ी देर नही खाएगा तो मर जायगा क्या ? फ़ोटो खींचने तक भी सब्र नहीं है, सालों को..., जा मर" ये कहते हुए उसने बच्चे को जोर से धक्का दिया।
बच्चा जाकर अपनी माँ के पास गिरा। माँ ने लपककर उसे गोद में उठा लिया। बच्चे ने सहम कर माँ के आँचल में मुँह छिपा लिया।
माँ को बच्चे के आँसू और फ़ोटो खिंचवाने के लिए प्रताप नारायण के होंठों पर आई बनावटी मुस्कुराहट एक साथ दिखी और उसके चेहरे पर कठोरता बढ़ती चली गई।
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८. कल्चरल प्रोग्राम - पूनम झा कोटा, ९४१४८ ७५६५४
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अपने छोटे बेटे गोलू को स्कूल से लेकर आयी रमा घर में प्रवेश करते ही पति को बड़े बेटे रवि जो दसवीं कक्षा का छात्र है , पर आगबबूला होते हुए देख कर चौंक कर पूछी -"क्या हुआ ..?"
"ये साहबजादे स्कूल नहीं जाते हैं, लड़कियों से छेड़छाड़ और मटरगश्ती करने जाते हैं ।" क्रोध से पति ने कहा ।
"..........." रमा सवालिया नजरों से देखती रही ।
"अरे! इसके स्कूल के प्रिंसिपल का फोन आया था । शिकायत कर रहे थे और कल हमें स्कूल बुलाया है ।"
"रवि! क्या हमलोगों ने तुम्हें यही सिखाया है ?" रमा बेटे की ओर मुखातिब होते हुए बरस पड़ी "हमारी क्या इज्जत रह जाएगी ? हमारी तो छोड़ो, तुम्हें अपने कैरियर की कोई चिंता नहीं है ? तुम्हारा अब बोर्ड है ...।"
रवि सिर झुकाए कोने में खड़ा था और गोलू जो दूसरी कक्षा में है , अपने हाथ में प्राईज लिए बारी-बारी से सबको देख रहा था ।
रमा की नजर उसपर पड़ते ही प्यार से बोल पड़ी --"अरे रे रे...मैं तो भूल ही गई !!!!...। देखिये गोलू को डांस में फर्स्ट प्राईज मिला है । मैं इसके डांस का विडियो पेन ड्राइव में लेकर आयी हूँ । आईये सबलोग देखिये गोलू कितना अच्छा डांस करता है । बिल्कुल गोविंदा की तरह डांस कर रहा है ।"
ये कहकर रमा ने पेन ड्राइव को टीवी में लगाकर गोलू के स्कूल के कल्चरल प्रोग्राम में गोलू के डांस का विडियो शुरू करके, सबके लिए खाना लगाने रसोई में चली गयी ।
दोनों बच्चे और पापा बहुत खुश हो-होकर गोलू का डांस देख रहे थे । डांस का गाना बज रहा था "मैं तो भेलपूड़ी खा रहा था ..लड़की घुमा रहा था .. तुमको मिर्ची ...।"
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९. महादान - भारती नरेश पाराशर जबलपुर, ८८३९२ ६६४३४
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बेचैन हो कर पति-पत्नी ने कहा, "डाक्टर साहब अब कैसी है हमारी सौम्या?"
_हम बचा नहीं पाए सौम्या को।
नहीं नहीं डाक्टर आप ऐसा नहीं कर सकते। आपने कहा था सौम्या ठीक हो जाएगी।
_भगवान की मर्जी के आगे हम सब मजबूर हो जाते हैं।
कहां है मेरी बेटी !कहां है!
पति ने पत्नी को संभाल कर बैठा दिया। तभी डाक्टर ने एक विनंती की कि मैं आपको कुछ सुझाव देना चाहता हूं।कारण आप दोनों पढ़ें लिखे हो।
पत्नी ने आशा भरी दृष्टि से पूछा," क्या सुझाव है हमें मंजूर है। मैं सौम्या के लिए कुछ भी कर सकती हूं। बताइए ना डाक्टर साहब आप पैसे की चिंता न करें।
_ डाक्टर ने पति से कहा," मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूं।"
पत्नी ने कहा नहीं! नहीं! हम दोनों की हमेशा एक ही राय होती है। आप हम दोनों के सामने बात कर सकतें हैं।
_डाक्टर साहब ने गला साफ करते हुए बिना पति-पत्नी से आँखें मिलाए एक सांस में कहा कि आप सौम्या के अंग दान कर आप अपनी सौम्या को कई जिंदगियों मे देख सकते हों।
पति-पत्नी दोनों ने एक-दूसरे के हाथ कसकर पकड़ लिए। आंखों की धारा बह निकली और कलेजा मुँह को आ गया गले का थूक निगल नहीं पाए .........।
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१० चुप न रहो - गीता शुक्ला फरीदाबाद, ९८११५ ६६५६८
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रात ११ बजे डोर बैल बजी। सभी ने एक दूसरे की तरफ प्रश्नात्मक निगाहों से देखा, सबके मन में यही सवाल था कि इतनी रात गए कौन हो सकता है? भैया ने दरवाजा खोला और स्तब्ध रह गए, सामने पारुल दीदी जिसकी अभी एक माह पूर्व ही शादी हुई थी, हाथ में सूटकेस लिए भीगी आंखो से उनकी ओर देख, बिना कुछ बोले सकुचाई सी अंदर आ गई और चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।
मां ,बाबूजी,भैया,भाभी सब पारुल दीदी के पीछे पीछे उनके कमरे में पहुंचे और दीदी को घेर लिया और पूछने लगे ’बेटा क्या बात है?क्या हुआ है तुझे?’बता ,बोल बेटा बोल। परन्तु दीदी थी कि रोए जा रही थी.....
एक माह ही तो हुआ था दीदी की शादी को। कितने अरमानों से विदा किया था बाबूजी ने अपनी बेटी को यही सोचते माँ बाबूजी बदहवास से एक दूसरे को देखने लगे.....। बहुत पूछने पर भी पारुल कुछ नहीं बोल पा रही थी । बाबूजी ने आगे बढ़कर कहा, "बहुत रात हो गई है, इस समय सब सो जाओ सुबह बात करेंगे। सब सोने चले गए। मैं दीदी के पास ही रुक गई।
जैसे तैसे रात बीती। कोई शायद सो नहीं पाया था ।सुबह मै दैनिक प्रक्रिया से निवृत हो, रसोई में चाय बनाने के लिए चली गई। धीरे धीरे सभी अपने अपने कमरे से निकल हॉल में आ गए। सबने चाय पी ली तो बाबूजी उठकर पारुल दीदी के पास गए,
उनके सिर पर हाथ रखा और बोले, "बेटा अब बता क्या बात है"। दीदी फिर से रोने लगी। स्वयं को बड़ी मुश्किल से संभाल पारुल दीदी ने कहा, "बाबूजी, विकास ने हमे धोखा दिया है"
बाबूजी चौंक कर बोले, "क्या कह रही हो, बेटा ?"
दरअसल, विकास की बढ़िया जॉब, उसका रुतबा और सादगी देख कर सभी को ये रिश्ता बहुत पसंद आ गया था, शायद इसीलिए सरल हृदय बाबूजी ने ज्यादा पूछताछ न करते हुए, रिश्ता पक्का कर दिया था। फ़िज़ूलख़र्ची और दिखावे के आडम्बर को खारिज करते हुए विकास ने कोर्ट मैरिज की बात कही थी, साथ ही ये भी कहा था कि जो पैसा व्यर्थ के रिवाजों में खर्च होगा वो उनके सुखी भविष्य के काम आ सकता है, बाबूजी ने भी उदारता और बड़प्पन दिखाते हुए एक मोटी रकम विकास को नकद दे दी थी, और उनकी कोर्ट मैरिज करवा दी थी।
"बाबूजी", पारुल सिसकी भरते हुए आगे बोली, "विकास पहले से शादीशुदा है, उसकी पहली पत्नी नीलू पटना में नौकरी करती है और वो भी इस शादी से अनजान थी। आज ही शाम अचानक वो दिल्ली आई और मुझे देख मेरा परिचय जानने को आतुर वो विकास से मेरे बारे में पूछ रही थी। निरुत्तर सा विकास बगलें झाँकने लगा तो मै ही बोली "मैं इनकी पत्नी हूँ, लेकिन आप कोन है" ?
”इनकी पत्नी।” इतना कह नीलू विकास पर बरस पड़ी "तुमने मुझे इतना बड़ा धोखा दिया, में तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी" । अपनी बात आगे बढ़ाते हुए पारुल बोली,"नीलू को समझाते बुझाते विकास मुझपे भी चिल्लाने लगा। मैं नहीं समझ पा रही थी कि ये सब क्या है? अब में क्या करूंगी। कहां जाऊंगी? मै सबको क्या कहूंगी? सब मेरी ही गलती समझेंगे , मेरी तो जिंदगी खराब हो गई, बाबूजी"। ऐसा कह पारुल फिर से रोने लगी।
पारुल का ये हाल देख हम सब परेशान थे। सोच रहे थे कि क्या करें। बाबूजी सोफे से उठे ओर चिंतित मुद्रा में गुस्से में पारुल के पास आ उसे दुलराते हुए उसके सर पर हाथ रख सशक्त आवाज में बोले "बेटा उठ हमें अभी पुलिस स्टेशन जाना है और विकास के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करानी है, तुझे फिजिकली तो अब्यूज नहीं किया ना ।तेरे साथ कुछ मार-पीट आदि की हो तो बता।”
पारुल चुप थी उसकी चुप्पी सबको साल रही थी।तभी चिंतातुर बैठी माँ उठी और जोर से चिल्लाई, "बोल, पारुल... बोल, भगवान के लिए चुप ना रह। सब कुछ सच सच बता दे बेटा,मेरा तो कलेजा फटा जा रहा है"।
परिवार के इस सपोर्ट ने मानो पारुल में नई जान फूँक दी थी और पारुल बाबूजी ओर भैया के साथ पुलिस स्टेशन की ओर चल दी।
***
११. आत्म मुग्ध - नीलम पारीक बीकानेर, ९७९९२ ८०३६३
*
- हेलो मैडम! अभी आपको वाट्सऐप पर एक कविता भेजी है। प्लीज, देखकर बताइए न कि कैसी लिखी है?
= देखिए, मैं कोई कवयित्री नहीं हूँ। मुझे इन सबका कोई ज्ञान नहीं है। आओ किसी को भेजिए न, जो सही राय दे सके।
- नहीं मैडम, आप ही बताइए, जैसी भी लगे। और हाँ, कोई कमी हो तो जरूर बताइए।
कुछ देर बाद
= हेलो हिमेश जी! वो आपकी कविताएँ पढ़ीं, खूबसूरत लिखी हैं।
- शुक्रिया मैडम!
= वो शीर्षक कुछ जँच नहीं रहा।
- मैडम! आपकी आवाज नहीं आ रही।
= हिमेश जी जितनी सुंदर कविता है उसी के अनुसार शीर्षक दिया है तुमने।
- है न मैडम। मालूम था मैडम आप ही समझ पाएँगी मेरी कविता को। बहुत बहुत शुक्रिया।
***
१२. साहसी कदम -सदानंद कवीश्वर ९८१०४ २०८२५ 
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पिछले तीन दिनों से शालिनी का रो-रो कर बुरा हाल था, न उसे खाने की सुध थी, न नहाने-धोने की, अब तो एसा लगने लगा था, मानो आँसू भी सूख गए हों l
मोटरसाइकिल पर घर से निकला उसका बेटा शिखर, रिंग रोड पर एक ट्रक से टकरा कर वहीँ बेहोश हो गया था l हालाँकि लोगों ने उसे तुरंत ही पास के एक बड़े अस्पताल में पहुँचा दिया था, पर आज तीसरे दिन भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया था l अचेतावस्था में वह आई.सी.यू. में लेटा हुआ था और होश में हो कर भी एक तरह से बेहोश सी शालिनी आई.सी.यू के बाहर बैठी हुई थी l दोनों ही दीन दुनिया से बेखबर l घर का कोई न कोई सदस्य शालिनी के साथ वहाँ होता था, पर शालिनी थी कि वहाँ से हटने को तैयार न थी l
“शालू, थोडा सा तो कुछ खा लो, ऐसे तो तुम्हारी भी तबीयत ख़राब हो जाएगी l” उसके पति रमेश ने समझाने की कोशिश की, पर शालिनी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी l
“शिखर ठीक तो हो जाएगा न ?” उसने कातर स्वर में पूछा l
“हाँ, हाँ... बिल्कुल हो जाएगा, आज पन्त हॉस्पिटल से एक सीनियर न्यूरो सर्जन को बुलाया है l”
“कब आएंगे वे ?” शालिनी ने पूछा l
“वे आ चुके हैं और यहाँ के डॉक्टर्स के साथ अन्दर ही हैं l”
शालिनी फिर से अपने सब देवी देवताओं को मनाने लगी l इतने में आई.सी.यू. के इंचार्ज डॉक्टर दीवान ने रमेश को इशारे से बुलाया और वरांडे में एक ओर ले जा कर बोले, “मैं आपकी हालत समझ सकता हूँ, पर कभी-कभी होनी के आगे हम विवश हो जाते हैं, शिखर ब्रेन डेड वाली हालत में पहुँच चुका है, जहाँ से अब उसका लौट पाना असंभव है l आप उसकी मदर को हौसला दीजिए और....” डॉक्टर दीवान ने शायद जान कर बात अधूरी छोड़ दी थी l
रमेश शालिनी के पास आ कर कुछ कहते इससे पहले ही कातर और दयनीय सी शालिनी में न जाने कहाँ से एक विचित्र सा आत्मविश्वास जाग उठा था, अचानक वह उठ के खडी हो गयी और दृढ़ता से बोली, “मैं वरांडे में इस तरफ खडी थी, मैंने आपकी और डॉक्टर की बात सुन ली है”, फिर रुंधे हुए गले से बोलीं, “मेरा शिखर जा रहा है, हमेशा सबकी मदद करने वाला और दुआएँ लेने वाला शिखर जाते जाते भी खाली हाथ नहीं जाएगा l आप डॉक्टर से बात करिये हमें शिखर की आँखें, किडनी, हार्ट, लीवर डोनेट करने हैं, मेरा बच्चा जाते जाते भी दुआएँ ले कर ही जाएगा l”
सिर पर टूटे दुःख के पहाड़ के बावजूद जब रमेश डॉक्टर दीवान के कमरे की तरफ जा रहे थे तो उनकी आँखों में आँसू और दिल में शालिनी - द्वारा उठाए इस साहसी कदम के लिए अपार प्रशंसा के भाव थे।
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१३. मदर डे - रमेश सेठी, रोपड़, ७००९२ ६७९५२
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सुबह आंख खुलते ही मानसी के मन में अपनी सखी सोनिया की बातें घूमने लगीं" कल मदर डे है,मैं तो कल बैठे बैठे ही नाश्ता लुंगी और फिर सैर को निकल जाऊंगी ।"
मानसी के चेहरे पे निराशा और चमक के भाव बारी बारी आ जा रहे थे -खिड़की से ठण्डी हवा आ रही थी-मानसी ने लेटे रहने का निश्चय किया और मन में ख्याली पुलाव बनाने लगी "आज तो मैं भी राज या बच्चों के हाथ का बना नाश्ता करूंगी।" तभी जोर से आती आवाज़ों ने उसके सुंदर ख्यालों को चकनाचूर कर दिया । राज और बच्चे नाश्ता मांग रहे थे -मानसी ने सब सुना और चादर से मुंह ढकते हुए बोली"आज मेरी तबियत ठीक नही है,अपने लिये भी बना लो और मुझे भी थोड़ा दे देना"
"मां,मैं कैंटीन में खा लूंगा"
मां मैं भी कॉलेज कैंटीन में खा लुंगी"
"मानसी,मैं भी पास के होटल से खा लूंगा"
मानसी का जवाब सुने बिना ही सब चले गए। मानसी को लगा जैसे अनेकों घड़े पानी किसी ने उस पे डाल दिया हो-याब उसकी मुस्कान दर्द में बदल गयी ।
लेटे लेटे पता ही न चला कब 9 वज गए -काम वाली रानी ने मालकिन को उदास लेटे देखा तो बोली"आपकी तबियत ठीक नही तो मैं खाना बना दूं"
रानी के राहत भरे शब्द से मानसी की उदासी झट से छू मंत्र हो गयी -झट से रसोई में गयी और बोली "रानी ,तू काम कर ले , मैं तेरे लिए परांठा बनाती हूँ ।"
परांठे बनाते हुए मानसी की ममता और करुणा फिर से जाग उठी और लगे हाथ परिवार के लिये दुपहर का खाना बनाने लगी।
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१४. Keto’s Diet - शिवानी खन्ना दिल्ली, ९८१०४ ३९७८९
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बेल बजी ,उधर कुकर की “ओहो
आई “मैंने किचन से आवाज़ दी
“अर्रे रमा दीदी आओ ,आओ”
आज हमारे घर का रास्ता कैसे भूल गयी ,
सजी धजी रमा दीदी को देख मैंने बाल ठीक करते हुए कहा
“मैं तुम्हारे पड़ोस में dietician डॉक्टर निशा के पास आइ थी
वेट maintain करने के लिए KETO diet बताई है,वैसे तो आइ हैव maintened वेल 35 से एक दिन ज़्यादा नहीं ।
“अच्छा हाँ ,मैंने kitchen से आती सीटी की तरफ़ ध्यान देते कहा ।
रमा दीदी ने पूछा कुछ ख़ास बना रही हो?
हाँ आज शाम आशीष के दोस्तों का डिनर है
बस दाल मखनी रह गयी बाक़ी दम आलू , शामी कबाब ,चिकन मसाला ,गोभी फ़्राइड ,दही भल्ले बनाए है ।
“आप के लिए लाती हूँ ज़रा टेस्ट करके बताना”
कहते मैं किचन में चली गयी
“इतना सारा खाना ले ,तुम्हें अभी तो बताया Keto diet पर हूँ 😒
पर तुम्हें क्या पता।
कुछ रिश्तेदारो की आदत होती है वो तानो का तोहफ़ा साथ लाते हैं
अभी बैठने लगी थी कि बिजलीवाला आ गया geyser लगाने ।
“दीदी आप कुछ लो मैं अभी आती हूँ “कह मैं बाथरूम की तरफ़ चली
५ मिनट हुएँ रमा दीदी कि आवाज़ आयी
“मेरे पार्लर से फ़ोन आया हैं मैं जा रही हूँ तुम दरवाज़ा बंद कर लो “
अभी मैं कुछ कहती कि मेज़ पर नज़र गयी
४ कबाब में ३ ,१ दही भल्ला आधा चिकन मसाला से लेग पीस और गोभी को भोग लग चुका था
शायद इस को Keto diet कहते है
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१५. जंगल - अनिता रश्मि राँची, ९४३१७ ०१८९३
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सुगुना फावड़ा चलाए जा रहा था और उसकी सोच के घोड़े दौड़ रहे थे।
" का फायदा!... इस बेर तो लगता है, भादो भी सूखले रहेगा। " साथी गोपी ने रोका।
सच में महीनों से कोई सुगबुगाहट नहीं। बैल-हल की चाल नहीं, रोपा नहीं। एक भी किसान नहीं।
लेकिन उसकी आस इतनी जल्दी टूटी नहीं। हर एक-दो दिन पर बादलों की भरमार से भरमाकर वह और अन्य दो-चार खेतिहर खेतों में उतर ही जाते। कभी फावड़ा-कुदाली, कभी हल-बैल, कभी ट्रैक्टर, किसी न किसी की मेहरबानी से खेतों का सन्नाटा भंग हो जाता। साथ में उसके छोटे-छोटे बच्चे भी खेतों की रौनक बढ़ा देते।
इस बेर भी पूरा सावन बदरिया आँख-मिचौली खेलती रह गई। भादो भी आधा बीत चला था। खेतों में छींटे गए बीज खाँसते-कराहते हुए किसी तरह नन्हें पौधों में बदल पाए थे। बिचड़े सूख रहे थे।
एक दिन अचानक खेतों से आवाजें। अधसूखे खेतों में खड़े बाबूनुमा लोग नापी कर रहे थे। मेड़ों पर खड़े पैजामा-धोतीधारी लोग लाइन से खड़े थे। सबके चेहरे पर एक अजब सी खुशी, संतुष्टि का भाव।
कुछ ही दिनों में वहाँ कंक्रीट के जंगल उगाने की तैयारी जोरों पर थी। अधिकांश किसान विभिन्न व्यापार, काम में अपना भविष्य तलाशने लगे थे। सुगुना उनमें से नहीं था।
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१६. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'जबलपुर, ९४२५१८३२४४ 
चंदा की विभा से आनंदित शेख के कानों में गीता की गूँज सुनाई दी। पूनम की चंद्रिका से आलोकित होते अंतर्मन में भारती की आरती उतारकर अनीता के माथे पर रेणु से तिलक लगाते हुए अंजू ने सदानंद को विश्व पुस्तक दिवस पर शुभ कामना दी। 
आचार्य जी ने मनोज और रमेश से पुस्तकें लौटने का अनुरोध किया तो शिवानी ने पूछा - 'क्या करेंगे पुस्तकें वापिस लेकर? आपको तो आभारी होना चाहिए कि आज के समय में भी कोई किताबें ले गया तो आपके कमरे में आपके बैठने के लिए स्थान तो है अन्यथा कमर किताबों से ही भर जाता और आपको खुद बाहर बैठना पड़ता।' 
- 'आपको किताबों से मोह की हद तक लगाव क्यों है?' पूछ रहा था सुरेंद्र। 
- 'किसी डाक टिकिट संग्राहक के पास जितने अधिक टिकिट हों और टिकिट एकत्र करने की इच्छा उतनी ही अधिक होती है।' नीलम जड़ी अंगूठी अंगुली में घूमते हुए शशि बोल पड़ी। 
= 'कोई तीर्थयात्री जितने तीर्थ करता जाता है, नए तीर्थ के दर्शन करने की उसकी इच्छा उतनी अधिक प्रबल होती जाती है। मुझ निर्जीव को सजीव बनाने वाली ये पुस्तकें तीर्थ से कम पवित्र नहीं हैं। यही मेरे जीवन की कमाई है। 
धन की सार्थकता न तो संचय करने में है, न लुटाने में, उसका सदुपयोग करने में ही उसकी सार्थकता है। 
पुस्तक न लौटानेवाले पुस्तक पढ़ता भी नहीं है। जो पुस्तक ले जाकर पढ़ता है, वही अगली पुस्तक लेने के लिए पुरानी पुस्तक लौटाता है। 
ये पुस्तकें मेरी बेटी जैसी हैं जिनकी बहुत जतन से मैंने हमेशा रक्षा की है। पिता बेटी का  हाथ उसे ही देता है जो उस हाथ को सहेजना-सम्हालना और हमेशा थामे रहना जानता हो। मुझे भी ऐसा हाथ मिलने तक पुस्तकें वापिस लेकर उसी तरह सुरक्षित रखना होगा जैसे कोई पिता पुत्री को सुरक्षित रखता है। 
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