स्मरण
वीरांगना नँगेली भारत की एक ऐसी स्वाभिमानिनी नारी थी जिसने उस समय की कर्मठ स्त्रियों को अपने उरोज न ढकने देने की अपमानजनक कुप्रथा के विरुद्ध आवाज उठाकर उसका साहसिक प्रतिकार किया और अपना उरोज कंचुकी से ढका। प्रतिक्रिया स्वरूप इस पर लगाये गए उरोज-कर के बदले उसने अपने उरोज ही काट कर दे दिए ऐसे में अत्यधिक रक्तस्राव से उसकी मृत्यु हो गई लेकिन उसका यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया और त्रावणकोर केरल की वह कुप्रथा सदैव के लिए ही बंद हो गई। उसके अदम्य साहस व लोक कल्याण की भावना को शत शत नमन है। आज दक्षिण भारत की स्त्रियां उसके इस बलिदान के कारण ही सम्मान से जी पा सही हैं। उस वीरांगना के स्वाभिमान को शत-शत नमन।
छंद रूपमाला
'स्वाभिमानिनी नँगेली'
नारियों का मान हो इस, भावना से युक्त।
काटकर अपने उरोजों को, हुई करमुक्त।
वीर पुत्री थी नँगेली, क्यों सहे अन्याय।
था किया प्रतिकार ऐसा, बन्द अब अध्याय।
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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