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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

मुक्तिका चाँदनी फसल..

 

विश्ववाणी हिंदी भाषा-साहित्य संस्थान
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। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल ।
।।'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल।।
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। जन्म ब्याह राखी तिलक, गृहप्रवेश त्यौहार ।
।।'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।
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मुक्तिका
चाँदनी फसल..
संजीव 'सलिल'
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इस पूर्णिमा को आसमान में खिला कमल.
संभावना की ला रही है चाँदनी फसल..
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वो ब्यूटी पार्लर से आयी है, मैं क्या कहूँ?
है रूप छटा रूपसी की असल या नक़ल?
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दिल में न दी जगह तो कोई बात नहीं है.
मिलने दो गले, लोगी खुदी फैसला बदल..
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तुम 'ना' कहो मैं 'हाँ' सुनूँ तो क्यों मलाल है?
जो बात की धनी थी, है बाकी कहाँ नसल?
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नेता औ' संत कुछ कहें न तू यकीन कर.
उपदेश रोज़ देते न करते कभी अमल..
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मन की न कोई भी करे है फ़िक्र तनिक भी.
हर शख्स की है चाह संवारे रहे शकल..
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ली फेर उसने आँख है क्यों ताज्जुब तुझे.?
होते हैं विदा आँख फेरकर कहे अज़ल..
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माया न किसी की सगी थी, है, नहीं होगी.
क्यों 'सलिल' चाहता है, संग हो सके अचल?
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२८-४-२०१५
-sanjiv ९४२५१८३२४४ salil.sanjiv@gmail.com

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