हम जाएँगे, फिर आएँगे, वसुधा को रहना होगा
गगन पवन से, अगन सलिल से, सब सुख-दुःख कहना होगा
ॐ प्रकाश सनातन, राहें बना-दिखाता सदा-सदा
काहे को रोना कोरोना-दर्द विहँस सहना होगा
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कोरोना को अधिक न कोसो, अनुशासन लेकर आया
उच्छृंखल करते मनमानी, हमें स्वशासन कब भाया?
प्रकृति दुखी मानव करनी से, वन पर्वत झरने रोते-
करें प्रदूषण मिटा स्वच्छता, दोष न अपना दिख पाया
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चारों ओर लगाओ पौधे, बचा सृष्टि को ओ मानव!
बालारुण का नित प्रकाश लो, कलरव सुन गा ओ मानव!
योग-ध्यानकर, नहा प्रार्थना प्रभु की कर, लो स्वल्पाहार
मेहनत ज्यादा भोजन कम कर, स्वास्थ्य बचाओ ओ मानव!
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२३-४-२०२१
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