हे समय के देवता!
संजीव 'सलिल'
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हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
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श्वास जब तक चल रही है, आस जब तक पल रही है,
अमावस का चीरकर तम-प्राण-बाती जल रही है.
तब तलक रवि-शशि सदृश हम रौशनी दें तनिक जग को.
ठोकरों से पग न हारें-करें ज्योतित नित्य मग को.
दे सको हारे मनुज को, विजय का अरमान दो तुम.
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
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नयन में आँसू न आएँ, हुलसकर सब कंठ गाएँ.
कंटकों से भरे पथ पर-चरण पग धर भेंट आये.
समर्पण विश्वास निष्ठा सिर उठाकर जी सके अब.
मनुज हँसकर गरल लेकर-शम्भु-शिववत पी सकें अब.
दे सको हर अधर को मुस्कान दो, मधुगान दो तुम..
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
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सत्य-शिव को पा सकें हम' गीत सुन्दर गा सकें हम.
सत्य-शिव को पा सकें हम' गीत सुन्दर गा सकें हम.
सत-चित-आनंद घन बन-दर्द-दुःख पर छा सकें हम.
काल का कुछ भय न व्यापे, अभय दो प्रभु!, सब वयों को.
प्रलय में भी जयी हों-संकल्प दो हम मृण्मयों को.
दे सको पुरुषार्थ को परमार्थ की पहचान दो तुम.
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
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टीप- लगभग ४ दशक पूर्व रचा गया मेरा पहला गीत।
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