मानवता पर दोहे
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मानवता के नाम पर, मजलिस बनी कलंक
शहर शहर को चुभ रहा, यह तबलीगी डंक
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मानवता कह रही है, आज पुकार पुकार
एकाकी रहकर करो, कोरोना पर वार
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मानवता लड़ रही है, अजब-अनूठी जंग
साधनहीनों की मदद, मानवता का रंग
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मानवता के घाट पर, बैठे राम-रसूल
एक दूसरे की मदद, करें न लड़ते भूल
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मानवता के बन गए, तबलीगी गद्दार
रहम न कर सख्ती करे, जेल भेज सरकार
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मानवता लिख रही है, एक नया अध्याय
कोरोना से जीतकर, बनें ईश पर्याय
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मानवता को बचाते, डॉक्टर पुलिस शहीद
मिल श्रद्धांजलि दें करें, अर्पित होली ईद
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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर
९४२५१८३२४४
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 14 अप्रैल 2021
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