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सोमवार, 23 नवंबर 2020

सरस्वती वंदना मालवी

 सरस्वती स्तवन

मालवी
संजीव
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उठो म्हारी मैया जी
उठो म्हारी मैया जी, हुई गयो प्रभात जी।
सिन्दूरी आसमान, बीत गयी रात जी।
फूलां की सेज मिली, गेरी नींद लागी थी।
भाँत-भाँत सुपनां में, मोह-कथा पागी थी।
साया नी संग रह्या, बिसर वचन-बात जी
बांग-कूक काँव-काँव, कलरव जी जुड़ाग्या।
चीख-शोर आर्तनाद, किलकिल मन टूट रह्या।
छंद-गीत नरमदा, कलकल धुन साथ जी
राजहंस नीर-छीर, मति निरमल दीजो जी।
हात जोड़, शीश झुका, विनत नमन लीजो जी।
पाँव पडूँ लाज रखो, रो सदा साथ जी
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मात सरस्वती वीणापाणी
मात सरस्वती वीणापाणी, माँ की शोभा न्यारी रे!
बाँकी झाँकी हिरदा बसती, यांकी छवि है प्यारी रे!
वेद पुराण कहानी गाथा, श्लोक छंद रस घोले रे!
बालक-बूढ़ा, लोग-लुगाई, माता की जय बोले रे !
मैया का जस गान करी ने, शब्द-ब्रह्म पुज जावे रे
नाद-ताल-रस की जै होवे, छंद-बंद बन जावे रे!
आल्हा कजरी राई ठुमरी, ख्याल भजन रच गांवां रे!
मैया का आशीष शीश पर, आसमान का छांवा रे!
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