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रविवार, 29 नवंबर 2020

मुक्तक

एक मुक्तक
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हमारा टर्न तो हरदम नवीन हो जाता
तुम्हारा टर्न गया वक्त जो नहीं आता
न फिक्र और की करना हमें सुहाता है
हमारा टर्म द्रौपदी का चीर हो जाता
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खींचकर चीर, चीर सका नहीं दु:शासन 
आम जन की न पीर दूर करे कुशासन 
धीर चुक गया है किसान का सम्हल जाओ-
मूका बहरा न बने; चेत जा जरा शासन 
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