कार्यशाला
दोहे
बीनू भटनागर
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1
सुबह सवेरे से लगी, बैंक मे है कतार।
सारे कारज छोड़के,लाये चार हज़ार।
2
अब हज़ार के नोट का, रहा न कोई मोल
सौ रुपये का नोट भी,हुआ बड़ा अनमोल।
3
बैंक खुले तो क्या हुआ,ख़त्म हो गया कैश।
खड़े खड़े थकते रहे, आया तब फिर तैश।
4
दो हज़ार का नोट भी, आये बहुत न काम।
दूध, ब्रैड,सब्ज़ी,फल के,कैसे चुकायें दाम।
5
मोदी जी ने कौन सा,खेल दिया ये दाव।
निर्धन खड़ा कतार में,धनी डुबाई नाव।
6
काला धन मत जोड़िये,आये ना वो काम।
आयकर देते रहिये,चैन मिले आराम।
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१.
लगी सुबह से बैंक में, लंबी बहुत कतार।
सारे कारज छोड़कर, लाये चार हज़ार।।
२.
अब हज़ार के नोट का, रहा न कोई मोल
सौ रुपये का नोट भी, आज हुआ अनमोल।।
३.
बैंक खुले तो क्या हुआ, ख़त्म हो गया कैश।
खड़े खड़े थक गए तो, आया बेहद तैश।।
४.
दो हज़ार का नोट भी, आये बहुत न काम।
साग, दूध, फल, ब्रैड के, कैसे दें हम दाम?
५.
मोदी जी ने कौन सा, खेल दिया ये दाँव।
निर्धन खड़ा कतार में, धनी थकाए पाँव।।
६.
काला धन मत जोड़िये, आये नहीं वह काम।
चुका आयकर मस्त हों, मिले चैन-आराम।।
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