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रविवार, 22 नवंबर 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
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लोहा हो तो सदा तपाना पड़ता है
हीरा हो तो उसे सजाना पड़ता है
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गजल मुक्तिका तेवरी या गीतिका कहें
लय को ही औज़ार बनाना पड़ता है
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कथन-कहन का हो अलहदा तरीका कुछ
अपने सुर में खुद को गाना पड़ता है
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बस आने से बात नहीं बनती लोगों
वक्त हुआ जब भी चुप जाना पड़ता है
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चूक जरा भी गए न बख्शे जाते हैं
शीश झुकाकर सुनना ताना पड़ता है
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