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रविवार, 29 नवंबर 2020

दोहा सलिला


दोहा सलिला 
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मुकुल हुआ मिथलेश मन, सीता सुता सहर्ष 
रघुवर को पा द्वार पर, वरे नवल उत्कर्ष 
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भाव भावना शुद्ध हो, शब्द सुमन अविनाश
छाया मिले बसंत में,  सपना छू आकाश  
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बिना मंजरी श्याम कब, कर संतोष प्रसन्न 
सरला भाषा वर सलिल, भक्ति भाव आसन्न
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