झाँझ बजा रे...
संजीव 'सलिल'
*
झाँझ बजा रे आज कबीरा...
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निज कर में करताल थाम ले,
उस अनाम का नित्य नाम ले.
चित्र गुप्त हो, लुप्त न हो-यदि
हो अनाम-निष्काम काम ले..
ताज फेंककर उठा मँजीरा.
झाँझ बजा रे आज कबीरा...
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झूम-झूम मस्ती में गा रे!,
पस्ती में निज हस्ती पा रे!
शेष अशेष विशेष सकल बन-
दुनियादारी अकल भुला रे!!
हरि-हर पर मल लाल अबीरा.
झाँझ बजा रे आज कबीरा...
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गद्दा-गद्दी को ठुकरा रे!
माया-तृष्णा-मोह भुला रे!
कदम जहाँ ठोकर खाते हों-
आत्म-दीप निज 'सलिल' जला रे!!
'अनल हक' नित गुँजा फकीरा.
झाँझ बजा रे आज कबीरा...
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२१-११-२०१०
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