सरस्वती वंदना
भोजपुरी
संजीव
*
पल-पल सुमिरत माई सुरसती, अउर न पूजी केहू
कलम-काव्य में मन केंद्रित कर, अउर न लेखी केहू
रउआ जनम-जनम के नाता, कइसे ई छुटि जाई
नेह नरमदा नहा-नहा माटी कंचन बन जाई
अलंकार बिन खुश न रहेलू, काव्य-कामिनी मैया
काव्य कलश भर छंद क्षीर से, दे आँचल के छैंया
आखर-आखर साँच कहेलू, झूठ न कबहूँ बोले
हमरा के नव रस, बिम्ब-प्रतीक समो ले
किरपा करि सिखवावलु कविता, शब्द ब्रह्म रस खानी
बरनौं तोकर कीर्ति कहाँ तक, चकराइल मति-बानी
जिनगी भइल व्यर्थ आसिस बिन, दस दिस भयल अन्हरिया
धूप-दीप स्वीकार करेलु, अर्पित दोऊ बिरिया
***
२१-११-२०१९
९४२५१८३२४४
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 21 नवंबर 2020
सरस्वती वंदना भोजपुरी
चिप्पियाँ Labels:
भोजपुरी सरस्वती,
सरस्वती भोजपुरी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें