कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

लघुकथा: बुद्धिजीवी और बहस

 लघुकथा:

बुद्धिजीवी और बहस
संजीव
*
'आप बताते हैं कि बचपन में चौपाल पर रोज जाते थे और वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलता था. क्या वहाँ पर ट्यूटर आते थे?'
'नहीं बेटा! वहाँ कुछ सयाने-समझदार लोग आते थे जिनकी बातें बाकी सभी लोग सुनते-समझते और उनसे पूछते भी थे.'
'अच्छा, तो वहाँ टी. वी. बहसों की तरह आरोप-प्रत्यारोप भी लगते होंगे?'
'नहीं, ऐसा तो कभी नहीं होता था.'
'यह कैसे हो सकता है? लोग हों, वह भी बुद्धिजीवी और बहस न हो... आप गप्प तो नहीं मार रहे?'
दादा समझाते रहे पर पोता संतुष्ट न हो सका.
*
२४-११-२०१४

कोई टिप्पणी नहीं: