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शनिवार, 18 अप्रैल 2020

मुक्तक

मुक्तक सलिला
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मुक्त विचारों को छंदों में ढालो रे!
नित मुक्तक कहने की आदत पालो रे!!
कोकिलकंठी होना शर्त न कविता की-
छंदों को सीखो निज स्वर में गा लो रे!!
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मुक्तक-मुक्तक मणि-मुक्ता है माला का।
स्नेह-सिंधु है, बिंदु नहीं यह हाला का।।
प्यार करोगे तो पाओगे प्यार 'सलिल'
घृणा करे जो वह शिकार हो ज्वाला का।।
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जीवन कहता है: 'मुझको जीकर देखो'।
अमृत-विष कहते: 'मुझको पीकर देखो'।।
आँसू कहते: 'मन को हल्का होने दो-
व्यर्थ न बोलो, अधरों को सीकर देखो"।।
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अफसर करे न चाकरी, नेता करे न काम।
सेठ करोड़ों लूटकर, करें योग-व्यायाम।।
कृषक-श्रमिक भूखे मरें, हुआ विधाता वाम-
सरहद पर सर कट रहे, कुछ करिए श्री राम।।
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छप्पन भोग लगाकर नेता मिल करते उपवास।
नैतिकता नीलाम करी, जग करता है उपहास।।
चोर-चोर मौसेरे भाई, रोज करें नौटंकी-
मत लेने आएँ, मत देना, ठेंगा दिखा सहास।।
१८-४-२०१८
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