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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

दोहे का रंग, अंगिका के संग

दोहे का रंग, अंगिका के संग:
संजीव 'सलिल'
(अंगिका बिहार के अंग जनपद की भाषा, हिन्दी का एक लोक भाषिक रूप)
*
काल बुलैले केकरs, होतै कौन हलाल?
मौन अराधे दैव कै, ऐतै प्रातः काल..
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मौज मनैतै रात-दिन, होलै की कंगाल.
साथ न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?.
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एक-एक के खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नीन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल.
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कौन हमर रक्षा करै, मन में 'सलिल' मलाल.
केकरा से बिनती करभ, सभ्भई हवै दलाल..
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धूल झोंक दें आँख में, कज्जर लेंय निकाल.
जनहित के नाटक रचैं, नेता निगलें माल..
* २१.४.२०१०

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